Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 483
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह चौथा भाग . माला .....)या आनुपूर्वी गिनना अथवा पांच पदों की वन्दना करना अर्थात् प्रा (देव) स्तुति करना / / गुरु आराधना-अपने नगर या ग्राम में विराजमान साधु साध्वी का शरीर में सुख समाधि रहते हुए प्रति दिन दर्शन करना है। ___ धर्म आराधना केवली भाषित, अहिंसा स्वरूप,जीवरक्षारूप दयामय धर्म को धर्म मानना। . सम्यक्त के पांच अतिचार 1 शंका, 2 कांक्षा, 3 विचिकित्सा, 4 परपाखंडी प्रशंसा और 5 परपाखंडी संस्तव। १शंका:- वीतराग द्वारा कथित गहन गंभीर वचन सुन कर " यह सत्य हैया असत्य" इस प्रकार सन्देह कानामशंका है। २कांचा-वीतराग द्वारा कथित धर्म के सिवायं दूसरे मिथ्या मार्ग का आडम्बर-चमत्कार देख कर उस परललचाना(वांच्या करना) कांक्षा है। 3 विचिकित्सा-धर्म की क्रिया के फल में सन्देह करना तथा त्यागी महात्माओं की त्याग वृत्ति के कारण उनके वस्त्र, पात्र, शरीरादि मलिन हों उन्हें देख कर घृणाकरना तथा उनकी जाति आदि से हीलना करना विचिकित्सा है। 4 परपाखंडी प्रशंसा-मिथ्या दृष्टि का पाढम्बर देख कर . 5 परपाखंडी संस्तव-मिथ्यादृष्टि से परिचय करने का नाम परपाखंडी संस्तव है। ये सम्यक्त्व के पांच अतिचार जानने योग्य है, किन्तु आचरण करने योग्य नहीं हैं। अपनी इच्छा और शक्ति के अनुसार नियम महण करे।

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