Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 501
________________ श्री वैन पिशान्त पोखर, चौथा भाग 2 (12) दिशि-दिशा परिमाण व्रत में जीवन भर के लिए जितना क्षेत्र रखा है उस क्षेत्र का संकोच करे अर्थात् चारों क्षेत्र की मर्यादा रख कर शेष का स्वेच्छा से जाने का त्याग करे। (13) स्नान-स्नान की गिनती तथा स्नान के लिए जन, के वजन का परिमाण करे। . . . (14) मते- अशनादि चार आहार का परिमाण करके ये चौदह नियम देशापकाशिक व्रत के ही अन्तर्गत हैं। पहले के व्रतों में जो मर्यादा रखी गई है, उसका इन चौदह' नियमों के चिन्तन से संकोच होता है और श्रावकपना भी सुशोमित होता है। एग मुहुत्तं दिवस, राई पंचाहमेव पक्खे वा। वयमिह धारेइ दर्द, जावइयं उच्च कोलं / / अर्थ:--- एक मुहर्च का या सुबह से लेकर शाम तक चार का या इससे कम ज्यादाअपनी इच्छानुसार नियम धारण करे। ., (धर्मसंग्रह प्रधिकार 2 पृष्ठ 1) दसवें व्रत के पांच अतिचार (1) प्राणवणप्पओगे-दूसरे को बुला कर अपने मर्यादित क्षेत्र से बाहर के पदार्थों को मंगाना / . . / (2) पेसवणाप्पयोगे नौकर, चाकर आदि माहाकारी पुल को अपने मर्यादित क्षेत्र से बाहर भेज कर कार्य करवाना।

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