________________ श्री जैन सिद्धान्त पोल सग्रह, चौथा भाग 503 चारों दिशाओं तथा विदिशाओं में ... कोस के उपरान्त,ऊँची दिशामें..... कोस के उपरान्त,नीची दिशा में.....कोस केउपरान्त, इस से आगे स्वयं अपनी इच्छा से जाकर पांच आश्रय सेवन करने का यावज्जीवन एक करण तीन योग से त्याग करता हूं। छठे व्रत के पांच अतिचार(१) उड्ढदिसिप्पमाणाइक्कमे-ऊँची दिशा के परिमाण का उन्लघन करना। (2) अहो दिसिप्पमाणाइक्कमे- नीची दिशा के परिमाण का उल्लंघन करना। (3) तिरिय दिसिप्पमाणाइक्कमे- तिर्थी दिशा अर्थात पूर्व, पश्चिम आदि चारों दिशाओं और विदिशाओं के परिमाण का उल्लंघन करना। (4) खितवुढी-एक दिशा के परिमाण को घटाकर दूसरी दिशा का परिमाण बढा देना। (5 सइ अंतरद्धा-क्षेत्र के परिमाण में सन्देह होने पर आगे चलना। (७)सातवाँ उपभोग परिभाग परिमाण व्रत एक बार भोग करने योग्य पदार्थ उपभोग कहलाते हैं और वार वार भोगे जाने वाले पदार्थ * परिभोग कहलाते हैं। * उपभोग और परिभोग शब्दों का उपरोक अर्थ भगवती शतक . उदशा मे तथा हरिभद्रीयावश्यक अध्ययन 6 सत्र में क्या है। उपासकदशाग अध्ययन 1 सूत्र की टीका में उपरोक अर्थ भी किया है और यह निम्नलिखित अर्थ भी किया:-बार बार भोगे जाने वाले पदार्यउपभोग और एक ही बार भोगे जाने वाले पदार्थ परिभोग कहलाते हैं।