Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 498
________________ 599 .... भी बेठिया जैन प्रन्थमाला; . (5) उबमोगपरिमोग्राइरिचे-उपभोग और परिमोग्र में पाने वाली खाने, पीने, पहनने आदि की वस्तुओं"का परिमाण से अधिक संग्रह करना।' * छठा,सातवां और पाठवाँ ये तीन गुण प्रत कहलाते हैं। चार शिक्षावतो का स्वरूप श्रावक-प्रतिक्रमण के अनुसार यहाँ दिया जाता है: ...() नवा सामायिक व्रतः... सम्पूर्ण सावध क्रियाओं का त्याग कर आध्यान, रौद्र ध्यान दूर करके तथा मन वचन कायाकी दुष्ट प्रवृति को रोक कर मात्मा को धर्मध्यान में लगाना और मनोवृत्ति-को समभाव में रखना सामायिक व्रत है। एक-सामायिक का काल दो पड़ी अर्थात् एक मुहूर्त (48 मिनिट है। ... .. :. प्रतिज्ञा:-मैं ऐसी सामायिक एक साल में ......) या एक महीने में (......) अथवा प्रतिदिन ......) करूंगा। नववें सामायिक व्रत के पांच अतिचार- 1) मणदुप्पणिहाणे- मन का, दुष्ट प्रयोग करना, अर्थात् मन को बुरे विचारों में लगाना। ... (2) यदुप्पणिहाणे- वचन का दुष्ट प्रयोग करना अर्थात् कठोर और सावध वचन बोलना। * उपासकदशाह के प्रथम अध्ययन में मानन्द भावक के अधिकार में उपरोक आठ अवों का निरूपण किया गया है। आगे के नवां, दसवां, ग्यारहवां और बारहवां ये चार शिक्षाबत है। शिक्षा रूप होने से इनका पश्चाखाण नहीं किया जाता है किन्तु शिखामण (शिक्षा) रूप से धारण किये जाते हैं। / / / (उपसिकदा मात्रा लीवराम घेडामाई दोशी प्रफमाइति संपत,१९७८).

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