Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 486
________________ _ , श्री मेठिश जैन ग्रन्थमाना / Sane अइमारे-किसी प्राणी पर उसकी शक्ति से अधिक भार लादना। (5) भत्तपाणवुच्छेए- अपने आश्रित जीवों के अन्न पानी में देश धुद्धि से अन्तराय देना। . इन अतिचारों (दोषों) को जान कर त्यागना चाहिए / / इस प्रकार सब व्रतों के अतिचार जानने योग्य हैं किन्तु आवरण करने योग्य नहीं हैं यह समझ लेना चाहिए। (2) दूसरा व्रत-स्थूल मृषावाद का त्याग: प्रतिज्ञा . - मैं कन्या, वर एवं समस्त मनुष्य सम्बन्धी तथा गाय, भैंस आदि समस्त पशु और पक्षी सम्बन्धी तथा भूमि और भूमि से उत्पन्न पदार्थोसम्बन्धी हानिकारक झूठ बोलने का,दूसरे की धरोहर दबाने का और झूठी साक्षी देने का यावज्जीवन दो करण तीन योग से त्याग करता हूं। दूसरे व्रत के पांच अतिचार " (1) सहसम्मक्खाणे- बिना विचारे किसी पर झूठा आरोप लगाना। " (2)* रहसब्भक्खाणे- एकान्त में किसी विषय पर सलाह * करते हुए व्यक्तियों पर राजद्रोह आदि का आरोप लगाना। (उपासकदशाह. अध्य. 1 सूत्र 7 टीका) . (हरिभनीयावश्यक मभ्ययन 6 पृष्ठ 820) (3) सदारमतमेए- एकान्त में अपनी- स्त्री द्वारा कही हुई गुप्त(छिपाने योग्य)बात को दूसरों के सामने प्रकट कर देना। के रहसब्भक्थाणे-'किसी की गुप्त बात प्रकट की हो' पुरानी धारणा के अनुसार ऐसा अर्थ किया जाता है। - -

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