Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 469
________________ ४७७ श्री जेन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग तुम्हारे सामने बता देगा। इससे तुम्हें विश्वास हो जायगा । इस के बाद साधु ने वकर से धन बताने को कहा । चकरा धन वाले स्थान पर जाकर उसे पैर से खोदने लगा। वहीं पर धन निकल आया । साधु की बात पर विश्वास करके लड़कों ने बकरे को छोड़ दिया तथा जैन धर्म को स्वीकार कर लिया । बकरे ने भी मुनि से धर्म का श्रवण कर उसी समय अनशन कर लिया । मर कर वह स्वर्ग में गया। __ मरने के बाद वे ही उसके शरण होंगे, ब्रामण ने इस आशा से तालाव खुदवा कर यज्ञ आदि शुरू किए थे किन्तु वे ही उसके लिए अशरण हो गए । इसी प्रकार मैंने भी डर कर आपकी शरण ली थी । यदि आप ही मुझे लूट रहे हैं तो मेरे लिए रक्षक ही भक्षक पन गया। इस प्रकार चार कथाएं सुनने पर भी प्राचार्य की दुर्भावना नहीं बदली, जिस प्रकार असाध्य रोग औषधियों से शान्त नहीं होता। प्राचार्य ने पहले की तरह उसके भी अलङ्कार खोस लिए। जिस प्रकार समुद्र पानी से तृप्त नहीं होता इसी प्रकार लोभी धन से सन्तुष्ट नहीं होता । इस प्रकार छः बालकों के आभूषण खोस कर उसने पात्र भर लिया और अपनी आत्मा को बुरे विचारों से मलिन बना लिया । बालकों के सम्बन्धी कहीं देख न लें, इस विचार से वह नन्दी जल्दी आगे बढ़ने लगा। देव ने इस प्रकार परीक्षा करके जान लिया कि आचार्य व्रतों से सर्वथा गिर गया है। उसके सम्यक्त्व की परिक्षा के लिए देव ने एक साध्वी की विक्रिया की । साध्वी बहुत से जेवरों से लदी थी उसे देख कर आचार्य ने रोप करते हुए कहा- आँखों में मुरमा लगाए, विविध प्रकार का शृङ्गार किए, तिलक से मण्डित जिन शासन की हँसी कराने वाली दुष्ट साध्वी! तुम कहाँसे आई हो?

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