________________
४७३
श्री जैन सिद्धान्त पोत संग्रह, चौथा भाग आभूषण पहिने हुए था। प्राचार्य उसके भी प्राभूषण छीनने के लिए तैयार हो गए। बालक ने अपना नाम बता कर नीचे लिखी कथा सुनाई
किसी जगह पाटल नाम का चारण रहता था। वह मनोहर कहानियों मुनाने में बहुत चतुर था । अच्छी अच्छी उक्तियों का समुद्र था। एक वार गङ्गा को पार करते हुए वह पूर में वह गया। तीर पर खड़े हुए लोगों ने उसे देखा और विस्मित होते हुए कहाचित्र विचित्र कथाएं सुनाने वाले और बहुश्रुत पाटल को गङ्गा बहा कर ले जा रही है । ओ पहने वाले ! तुम्हारा कल्याण हो। कोई सुभापित सुनायो।
दोनों किनारों से लोगों की बात सुन कर पाटल पोला-जिस से वीज उगते हैं, जिसके आधार पर किसान जीते हैं, उस में पड़ कर मैं मर रहा हूँ। शरण देने वाले से ही मुझे भय हो गया है। ___कहानी कह कर पालक ने बहुत प्रार्थना की किन्तु निर्दय हो कर आचार्य ने उसके भी आभूपण छीन लिए।
आगे बढ़ कर प्राचार्य ने तेजस्कायिक नाम के तीसरे बालक को देखा और भाभूपण छीनने की तैयारी की। चालक ने अपना नाम बता कर नीचे लिखी कथा सुनाई
किसी आश्रम में सदा अनि की पूजा करने वाला एक तापस रहता था। एक दिन भाग से उस की झोंपड़ोजल गई। वह बोलाजिसे मधु और घी से दिन रात तृप्त करता रहता हूँ, उसी ने मेरी झोपड़ी जला डाली । शरण देने वाला ही मेरे लिए मयकारक बन गया है। मैंने व्याघ्र से डर कर अग्नि की शरण ली थी।
उसने मेरे शरीर को जला डाला । शरण हो भय देने वाली बन - गई। यह कह कर बालक ने रक्षा के लिए प्रार्थना की किन्तु भाचार्य
ने आभूषण छीन लिए।