________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग ५१ उनके विषय में सन्देह न करना चाहिए।
सूर्य चन्द्र आदि ज्योतिषी देवों को तुम दिन रात देखते हो। यद्यपि दिखाई देने वाले विमान है, फिर भी विमान से विमान में रहने वाला स्वतः सिद्ध हो जाता है, क्योंकि रहने वाले का सर्वथा अभाव होने पर रहने का स्थान नहीं बन सकता।
अनुमान से भी देवों का अस्तित्व सिद्ध होता है-देव हैं, क्योंकि लोक में देवों द्वारा किए गए उपकार और अपकार देखे जाते हैं, जैसे राजा वगैरह द्वारा किए गए उपकार और अपकार ।।
मनुष्य और तिर्यञ्च गति में सुख और दुःख दोनों मिले हुए हैं। किसी को सुख अधिक है, किसी को दुःख । जिन जीवों ने उत्कट पुण्य या पाप किया है, उनके फल भोग के लिए ऐसा स्थान होना चाहिए, जहाँ सुख ही सुख हो या दुःख ही दुःख हो। इन्हीं दो स्थानों का नाम स्वर्ग और नरक है।
शडा-यदि देव हैं और अपनी इच्छापूर्वक आहार विहार करते रहते हैं तो वे मनुष्यलोक में क्यों नहीं पाते ? - समाधान -देवों के मनुष्यलोक में नहीं आने के कई कारण हैं। जैसे सुन्दर रूप वाली कामिनी में आसक्त और रमणीय प्रदेश में रहने वाला व्यक्ति अपने स्थान को छोड़ कर दूसरी जगह नहीं जाना चाहता, इसी तरह स्वर्गीय वस्तुओं में प्रेम वाले होने से तथा वहाँ के काम भोगों में आसक्त होने के कारण देव मनुष्यलोक में नहीं पाते। जैसे अपने कार्य में व्यस्त मनुष्य इधर उधर नहीं जाता, इसी तरह देव अपना कार्य समास न होने से मनुष्यलोक में नहीं आते । जिस प्रकार सङ्गरहित मुनि विना चाहे घर में नहीं जाता इसी प्रकार देव मनुष्यों के अधीन न होने के कारण यहाँ नहीं आते। मनुष्य-लोक के अशुभ तथा दुर्गन्धि वाला होने के कारण भी देव नहीं पाते।