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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला हन्त जिन केवली, अपरिस्रावी (कर्मचन्ध रहित)। ___ उपरोक्त पाँचों निग्रन्थों में निम्न लिखित ३६ बातों का कथन इस उद्देशे में किया गया है
प्रज्ञापन, वेद, राग, कल्प, चारित्र, प्रतिसेवना, ज्ञान, तीर्थ, लिङ्ग, शरीर, क्षेत्र, काल, गति, संयम, निकाश (संभिकर्ष), योग, उपयोग, कषाय, लेश्या, परिणाम, बन्ध, वेद (कर्मों का वेदन), उदीरणा, उपसंपद-हान (स्वीकार और त्याग), संज्ञा, आहार, भव, आकर्ष, कालमान, अन्तर, समुद्घात, क्षेत्र, स्पर्शना, भाव, परिमाण और अल्पबहुत्व।
(७)उ०-संयम के मेद, सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म सम्पराय, यथाख्यात । सामायिक के दो भेदइत्वरिक (अल्प कालीन), यावत्कथिक (जीवन पर्यन्त)। छेदो. पस्थापनीय के दो भेद-साविचार और निरविचार। परिहारविशुद्धि के दो मेद-निर्विशमानक ( तप करने वाला) और निविष्टकायिक (वैयावृत्य करने वाला)। सूक्ष्म सम्पराय के दो भेदसंक्लिश्यमानक और विशुद्धयमानक । यथाख्यात के दो भेदछास्थ और केवली। इन पाँचों संयमों में भी उपरोक्त प्रज्ञापन, वेद, राग, कल्प, चारित्र आदि ३६ बातों का कथन इस उद्देशे में किया गया है।
(८)उ०-नारकी जीवों की उत्पत्ति, गति और इनका कारण। परभव, आयुष्यबन्ध का कारण । असुरकुमार आदि की उत्पत्ति और गति आदि का कथन।
(-१२) उ०-भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक, सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि नैरयिकों की उत्पत्ति का कथन क्रमशः नवे दसवें । ग्यारहवें और बारहवें उद्देशे में किया गया है। २४ दण्डक में भी इसी प्रकार का कथन किया गया है।