________________
२३० श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला , (१३) प्राभूत-चन्द्र की वृद्धि और अपवृद्धि ।
(१४) प्रामृत-शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष।
(१५) प्रामृत-ज्योतिषियों की शीघ्र और मन्द गति । नक्षत्रमास, चन्द्रमास, ऋतुमास और आदित्यमास में चलने वाले मण्डलों की संख्या आदि का वर्णन । (१६) प्रामृत-उद्योत के लक्षण । (१७) प्रामृत-चन्द्र और सूर्य का च्यवन । (१८) प्रामृत-ज्योतिषियों की ऊंचाई। (१६) प्रामृत-चन्द्र और सूर्यों की संख्या।
(२०) प्राभूत-चन्द्र और सूर्य का अनुभाव । ज्योतिषियों के भोग की उत्तमता का दृष्टान्त ! ८८ ग्रहों के नाम ।
(७) सूर्य प्रज्ञप्ति सूत्र यह सातवाँ उपाङ्ग है। यह उत्कालिक सूत्र है। इसमें सूर्य की गति, स्वरूप, प्रकाश आदि विषयों का वर्णन है। सूर्यप्राप्ति में २० प्राभूत हैं । विषयों का क्रम नीचे लिखे अनुसार है।
(१) प्राभृत-प्रथम प्रतिप्रामृत-सूर्यमण्डल का परिमाण । द्वितीय प्रतिप्रामृत-मंडल का संस्थान । तृतीय प्रतिप्राभूत मण्डल का क्षेत्र । चतुर्थ प्रतिप्रामृत--ज्योतिषियों में परस्पर अन्तर । पंचम प्रतिप्रामृत-द्वीप आदि में गति का अन्तर ।छठा प्रविप्रामृत--दिन और रात में ग्रहों का स्पर्श । सातवाँ प्रतिप्रामृत- मण्डलों का संस्थान । आठवाँ प्रतिप्राभूत-मण्डलों का परिमाण ।
(२) प्रामृत-प्रथम प्रतिप्राभृत-विी गति का परिमाण । द्वितीय प्रतिप्रामृत-मण्डल संक्रमण । तृतीय प्रतिप्राभृत-मुहूर्त में गति का परिमाण । - (३) प्रामृत--क्षेत्र का परिमाण ।