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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
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हैं | दो क्रियाएं - आज्ञापनी, वदारिणी । स्वाहस्तिकी की तरह प्रत्येक के दो भेद हैं | दो क्रियाएं - अनाभोगप्रत्यया, अनवकांक्षाप्रत्यया । श्रनाभोगप्रत्यया के दो भेद - अनायुक्तादानता, अनायुक्तप्रमार्जनता । अनवकांक्षाप्रत्यया के दो भेद - आत्मशरीरानवकांक्षाप्रत्यया, परशरीरानवकांक्षाप्रत्यया । दो क्रियाएं - रागप्रत्यया, द्वेषप्रत्यया । रागप्रत्यया के दो भेद - मायाप्रत्यया, लोभ प्रत्यया । द्वेषप्रत्यया के दो भेद — क्रोध, मान ।
ग के दो मेद-मन से, वचन से, अथवा दीर्घ काल तक ग, थोड़े काल तक गर्दा । प्रत्याख्यान के दो भेद - मन से, वचन से, अथवा दीर्घ काल तक के लिए, अल्पकाल के लिए । संसार सागर को पार करने के दो मार्ग — ज्ञान, चारित्र । आरम्भ और परिग्रह रूप दो बातों का त्याग किए बिना आत्मा केवली के धर्म को प्राप्त नहीं कर सकता, उसे समझ नहीं सकता, शुद्ध दीक्षा का पालन नहीं कर सकता, ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकता, संयम नहीं पाल सकता, संवर नहीं कर सकता अर्थात नए कर्मों के आगमन को 'नहीं रोक सकता, मतिज्ञान आदि पाँच ज्ञानों को प्राप्त नहीं कर संकता, इन्हीं दो बातों का त्याग करके जीव ऊपर लिखी ग्यारह बातों को प्राप्त कर सकता है । दो काल -- उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी । दो उन्माद - यचावेश से होने वाला और मोहनीय कर्म के उदय से होने ' वाला, इन दोनों का भेद । दो दंड-अर्थदंड, अनर्थदंड | दो दर्शनसम्यग्दर्शन, मिथ्यादर्शन । दो सम्यग्दर्शन --- निसर्गसम्यग्दर्शन, अभिगमसम्यग्दर्शन । निसर्गसम्यग्दर्शन के दो भेद - प्रतिपांती, श्रप्रतिपाती । अभिगमसम्यग्दर्शन के दो भेद - प्रतिपाती, अप्रतिपाती । मिथ्यादर्शन के दो भेद - श्रभिग्रहिक मिथ्यादर्शन, अनाभिग्रहिक मिथ्यादर्शन । श्रभिग्रहिकमिध्यादर्शन के दो भेद - सपर्यव - सित, पर्यवसित | इसी तरह अनाभिग्रहिक के भी दो भेद हैं । दो
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