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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
वगैरह देखने पर मुख में पानी भरना इस बात को सिद्ध करता है कि आँख और मुख दोनों में क्रिया करने वाला कोई तीसरा है और वह आत्मा है।
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बालक का ज्ञान किसी दूसरे के ज्ञान के बाद होता है क्योंकि ज्ञान है । जो ज्ञान होता है, वह किसी दूसरे ज्ञान के बाद ही होता है जैसे युवक का ज्ञान । बालक के ज्ञान से पहले होने वाला ज्ञान शरीरजन्य नहीं हो सकता क्योंकि पूर्व शरीर पूर्वभव में ही नष्ट हो जाता है। ज्ञान रूप गुण बिना आत्मा रूपी गुणी नहीं रह सकता जैसे प्रकाश बिना सूर्य नहीं रह सकता। इसलिए श्रात्मा सिद्ध होता है ।
माता के स्तनपान के लिए होने वाली बालक की प्रथम अभिलाषा किसी दूसरी अभिलाषा के बाद होती है क्योंकि अनुभव . रूप है । जैसे बाद में होने वाली अभिलाषाएँ । जब तक वस्तु का ज्ञान नहीं होता तब तक उसकी इच्छा नहीं होती। बालक बिना चंताए ही दूध पीने की इच्छा तथा उसमें प्रवृत्ति करने लगता है, इससे सिद्ध होता है कि उसे इन वस्तुओं का ज्ञान पहले से है । इस ज्ञान का आधार पूर्व जन्म का शरीर तो हो नहीं सकता, क्योंकि वह नष्ट हो चुका है, वर्तमान शरीर भी नहीं हो सकता क्योंकि उसने अनुभव नहीं किया है । इसलिए पूर्व शरीर और वर्तमान शरीर दोनों के अनुभव का आधार कोई स्वतन्त्र आत्मा है ।
इत्यादि अनुमानों द्वारा शरीर से भिन्न आत्मा सिद्ध कर देने पर वायुभूति की संशय दूर होगया और वे भगवान् महावीर के शिष्य होगए ।
(४) व्यक्त स्वामी - इन्द्रभूति, अभिभूति और वायुभूति की दीक्षा का समाचार सुन कर व्यक्त स्वामीं का हृदय भी भक्ति पूर्ण हो गया। वे भी बन्दना नमस्कार करने के लिए भगवान् के पास आए।
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