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श्री जैन सिद्धा त बोल संग्रह, चौथा भाग
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७७२ दुर्लभ ग्यारह
संसार में ग्यारह बातों की प्राप्ति होना बहुत दुर्लभ है । वे निम्न लिखित हैं
(१) मनुष्य भव (२) श्रर्यक्षेत्र (३) उत्तम जाति (मातृपक्ष को जाति कहते हैं) (४' उत्तम कुल (पितृपक्ष कुल कहलाता है ) (५) रूप अर्थात् किसी भी अङ्ग में हीनता न होना (६) आरोग्य (७) आयु (८) बुद्धि अर्थात् परलोक सम्बन्धी बुद्धि (६) धर्म का सुनना और उसका भली प्रकार निश्चय करना (१०) निश्चय कर लेने के पश्चात् उस पर श्रद्धा ( रुचि) करना (११) निरवद्य अनुष्ठान रूप संयम स्वीकार करना । ( हरिभद्रीयावश्यक प्रथम भाग गाथा ८३१ )
७७३ आरम्भ और परिग्रह को छोड़े बिना ग्यारह बातों की प्राप्ति नहीं हो सकती
श्रारम्भ और परिग्रह को छोड़े बिना निम्न लिखित ग्यारह वातों की प्राप्ति नहीं हो सकती ।
(१) केवलिप्ररूपित धर्मश्रवण - श्रारम्भ और परिग्रह अनर्थ के मूल कारण हैं। आरम्भ और परिग्रह से सन्तोष किये विना प्राणी केवली भगवान द्वारा फरमाये गये धर्म को सुन भी नहीं सकता । (२) आरम्भ और परिग्रह को छोड़े बिना प्राणी शुद्ध सम्यक्त्व को प्राप्त नहीं कर सकता अथवा जीवाजीवादि नव तत्त्वों का सम्यग् ज्ञान नहीं कर सकता ।
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(३) आरम्भ परिग्रह को छोड़े बिना प्राणी मुण्डित होकर गार धर्म से श्रीनगर धर्म को प्राप्त नहीं कर सकता । केशलोचन आदि द्रव्यमुण्डपना है और क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषायों पर विजय प्राप्त करना अर्थात् इन्हें छोड़ देना भावमुण्डपना कहलाता
है । जो व्यक्ति आरम्भ, परिग्रह को छोड़ देता है वही शुद्ध प्रव्रज्या
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