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( २६) उ०-ऐसी मोहरुपी महामदिरापान का फल चारो गतियो मे घूमकर निगोद जाना बताया है।
प्र० २५-शरीर की उत्पत्ति से जीव का जन्म और शरीर के वियोग से जीव का भरण-ऐसी मोहरुपी महामदिरापान का फल छहढाला की प्रथम ढाल मे चारो गतियो मे घूमकर निगोद जाना क्यो बताया है ?
उ०-(१) स्वय वीतराग विज्ञानतारुप एक ज्ञायक शुद्ध आत्मा। (२) शरीर की उत्पत्ति और वियोग व्यवहारनय से एक मात्र ज्ञान का ज्ञेय है। (३) परन्तु ऐसा न मानकर शरीर की उत्पत्ति से जीव का जन्म और शरीर के वियोग से जीव का मरण है-ऐसी खोटी मान्यता से चारो गतियो मे धूमकर निगोद जाना बताया है।
प्र०२६-तन उपजत अपनी उपज जान, तन नशत आपको नाश मान । छहढाला की दूसरी ढाल के इस दोहे मे अजीवतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल बताने के पीछे क्या मर्म है ?
उ०-(१) जीव जन्मादि रहित नित्य ही है। इस बात को भूलकर शरीर की उत्पत्ति से जीव का जन्म और गरीर के वियोग से जीव का मरण मानना ही अजीवतत्त्व सम्बन्धी जीव वी भूल है। (२)जीव जन्मादि रहित नित्य ही है। इस बात को भूलकर शरीर की उत्पत्ति से जीव का जन्म और शरीर के वियोग से जीव का मरण मानना-ऐसा अनादिकाल का एक-एक समय करके चला आ रहा श्रद्धान अगृहीत मिथ्यादर्शन है। (३) जीव जन्मादिरहित नित्य ही है। इस बात को भूलकर शरीर की उत्पत्ति से जीव का जन्म और शरीर के वियोग से जीव का मरण जानना-ऐसा अनादिकाल का एक-एक समय करके चला आ रहा ज्ञान अगृहीत मिथ्या ज्ञान है। (४) जीव जन्मादि रहित नित्य ही है। इस बात को भूलकर शरीर