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(६५) प्र०७-मिथ्यादर्शनादि छहढाला की दूसरी ढाल में कितने प्रकार के बतलाये है ?
उ०-अगृहीत-गृहीत के भेद से मिथ्यादर्शनादि दो-दो प्रकार के बतलाये है।
प्र०८-छहढाला को दूसरी ढाल मे अगृहीत मिथ्यादर्शन-ज्ञानचरित्र और गृहीत मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चरित्र का स्वरुप क्या-क्या बताया है ?
उ.-"जीवादि प्रयोजनभूत तत्व, सरधे तिन माहि विपर्ययत्व ।।" जीवादि सात तत्व प्रयोजनभूत किस प्रकार है ? (१) जिसमे मेरा ज्ञान दर्शन हो वह जीवतत्व है, वह जीवतत्व एकमात्र आश्रय करने योग्य प्रयोजनभूत तत्व है। (२) जिनमे मेरा ज्ञान-दर्शन नही है, वे अजीव तत्व है, मुझ निज आत्मा के अलावा विश्व मे अनन्त जीव द्रव्य, अनन्तानन्त पुदगल द्रव्य, धर्म-अधर्म-आकाश एकेक द्रव्य, लोकप्रमाण असख्यात काल द्रव्य है, ये सब द्रव्य जानने योग्य प्रयोजन भूत तत्व है। (३) शुभाशुभ विकारी भावो का उत्पन्न होना आस्रव तत्व है, आस्रव तत्व छोडने योग्य प्रयोजनभूत तत्व है । (४) गुभाशुभ विकारी भावो मे अटकना बन्धतत्व है, वन्धतत्व छोडने योग्य प्रयोजन भूत तत्व है। (५) शुद्धि का प्रगट होना सवरतत्व है सवरतत्व छोडने योग्य प्रयोजन भूत तत्व है । (६)शुद्धि की वृद्धि होना निर्जरातत्त्व है, निर्जरा तत्व एकदेश प्रगट करने योग्य प्रयोजनभूत तत्व है ।(७)सम्पूर्ण शुद्धि का प्रगट होना मोक्ष तत्व है, मोक्ष तत्व पूर्ण प्रगट करने योग्य प्रयोजनभूत तत्व है। इस प्रकार योजनभूत सात तत्वो का अनादिकाल से उल्टा श्रद्धान अगृहीत मिथ्यादर्शन है ॥१॥ " इस प्रकार प्रयोजनभूत सात तत्वो का अनादिकाल से उल्टा ज्ञान अगृहीत मिथ्या ज्ञान है ॥२॥ • इस प्रकार प्रयोजनभूत सात-तत्वो का अनादिकाल से उल्टा आचरण अगृहीत मिथ्याचारित्र है ॥३॥