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(६८) द्रव्य निमित्त है-इस बात को न जानकर आकाग द्रव्य मुझे जगह देता है ऐसा मानता है। (११) मुझ निज आत्मा के अलावा विश्व में एक प्रदेशी लोक प्रमाण असन्यात काल द्रव्य हैं, उनकी चाल मुझ जीव से भिन्न है । परन्तु मुझ आत्मा अनादिकाल से स्वय स्वत अपने परिणमन स्वभाव के कारण परिणमता है, उसमे काल द्रव्य निमित्त होता है-इस बात को न जानकर कालद्रव्य मुझे परिणमाता है ऐसा मानता है।
प्र० ११-जीवतत्व सम्बन्धी जीव की भूल रुप अगृहीत मिथ्यादर्शनादि और गृहीत मिथ्यादर्शनादि का स्वरूप छहढाला की दूसरी ढाल मे क्या-क्या बताया है ?
उ.-मैं मुखी दुखी मैं रक राव, मेरे धन-गृह गोधन प्रभाव । मेरे सुत तिय मै सवलदीन, बेरुप सुभग मूख प्रवीन ॥४॥ (१) शरीर की अनुशलता से मैं सुखी और शरीर की प्रतिकलता से मैं दुःखी, (२) गरीब होने से मै दुखी और राजा होने से मैं सुखी. (३) धनघर-गाय-भैस आदि होने से मैं सुन्वी और धन-घर-गाय-भैस आदि न होने से मैं दुखी, (४) राज्य-गाव-देश पर मेरा प्रभाव होने से मैं सुखी और राज्य-गाव-देश पर मेरा प्रभाव न होने से मै दुखी, (५)लडकास्त्री-भाई-बहिन होने से मै सुखी और लडका-स्त्री-भाई-बहिन न होने से मै दुखी, (६) ताकतवर होने से मै सुखी और कमजोर होने से मैं दुखी, (७) कुरुप होने से मैं दुखी और सुन्दर होने से मैं सुली, (८) म्रख होने से मै दुखी और प्रवीन होने से मै सुखी, (६) अनशनादि करने से मै सुखी अनगनादि न करने से मैं दुखी, (१०) प्रवचनकार होने से मैं सुखी और प्रवचनकार न होने से मैं दुखी, (११) सिद्धचक्र का पाठ करने से मैं सुखी और सिद्धचक्र का पाठ न करने से मैं दुःखी, (१२) यात्रा करने से मे सुखी और यात्रा न करने से मै दै खी, (१३) व्यापारादि चलने से मैं सुखी और व्यापारादि न चलने से मै दु.खी, (१४) लाटरी आने से मैं सुखी और