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से अधिक चार ज्ञान हो सकते है | खुलासा इस प्रकार है (१) केवल ज्ञान एक ही होता है । (२) दो - मतिज्ञान और श्रुतज्ञान होते है । ३) तीन मति श्रुत अवधि ज्ञान अथवा मति श्रुत मन पर्यय ज्ञान होते है । (४) चार-मति श्रुत अवधि और मन पर्यय ज्ञान होते ।
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प्र० १५५ ज्ञान को मिथ्याज्ञान क्यो कहा है ?
उत्तर - मिथ्या दृष्टियो का मति श्रुतज्ञान अन्य ज्ञेयो मे लगता है, किन्तु प्रयोजन भूत जीवादि तत्त्वो के यथार्थ निर्णय मे नही लगता होने से मिथ्या दृष्टियो के ज्ञान को मिथ्याज्ञान कहा है।
प्र० १५६- ज्ञान को अज्ञान क्यो कहा है ?
उत्तर- तत्वज्ञान का अभाव होने से ज्ञान को अज्ञान कहा है ।
प्र० १५७ - ज्ञान को कुज्ञान क्यो कहा है ?
उत्तर - अपना प्रयोजन सिद्ध नही करने की अपेक्षा से कुज्ञान कहा है ।
प्र० १५८ - ज्ञान के दूसरी तरह से कितने भेद है ? उत्तर- दो भेद है-परोक्ष और प्रत्यक्ष |
प्र० १५६ - परोक्ष ज्ञान कौन-कौन से है ?
उत्तर - कुमति-कुश्रुत, सुमति सुश्रुत ये चार ज्ञान परोक्ष 1
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प्र० १६० - प्रत्यक्ष के कितने भेद है ?
उत्तर- दो भेद है - विकल और सकल ।
प्र० १६१ विकल्पज्ञान कौन-कौन से है ?
उत्तर - कुअवधि- सुअवधि और मन पर्यय ज्ञान विकल ज्ञान है । प्र० १६२-सकल प्रत्यक्ष कौन सा ज्ञान है ? उत्तर- केवल ज्ञान सकल प्रत्यक्ष है ।
प्र० १६३ - ज्ञान दर्शन के बारह भेद किस-किस भाव मे आते है ?
उत्तर - [१] केवल ज्ञान और केवल दर्शन क्षायिक भाव मे आते
है । [२] बाकी दस भेद क्षायोपशमिक भाव मे आते है । [३] इन