Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 298
________________ ( 12 ) उत्तर - वीर प्रभु की हम सन्तान । धारे जिन सिद्धात महान । समझे पढने मे कल्याण । गावे गुरुवर का गुणगान ॥ वीर० ।। पढकर बने वीर विद्वान । पावे निश्चय आतम ज्ञान । गुरु उपकार हृदय मे आन । उनको नमे सहित सम्मान ।। वीर० ।। प्र० १०४-तुम्हारे देव कौन हैं ? उत्तर-अरहत मेरा देव है। प्र० १०५-अरिहंत देव कैसे है ? उत्तर-अरहत देव सच्चे वीतरागी है। प्र० १०६-वे हमको क्या दिखाते हैं ? उत्तर-वे हमको मुक्ति मार्ग दिखाते है। प्र० १०७-मुक्ति मार्ग कैसा है ? उत्तर-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, और वीतराग चारित्ररुप मुक्ति मार्ग है। प्र० १०८-तुम किसके समान हो ? उत्तर-मै अरहत के समान शुद्धात्मा हैं। प्र० १०६-अरहंत बनने के लिए किसको जानना चाहिए? उत्तर-अरहत बनने के लिए अरहत जैसा अपना आत्मा जानना चाहिए। प्र० ११०-पंच परमेष्ठी के वंदन की कविता बोलो ? उत्तर करू नमन मै अरहत देव को, करू नमन मैं सिद्ध भगवत को, करू नमन मै (आचार्य) देव को, करू नमन मै उपाध्याय देव को,

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