Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 304
________________ ( 18 ) मुनिराज ने वहां जाकर उपदेग देकर आत्मस्वरूप समझाया। जिसे समझ कर भगवान के जीव ने उसी समय मम्यग्दगंन प्रगट किया। प्र० १४४-ऋषभ देव के जोव ने पिछले ८ भव में मुनि को आहार दान दिया था उसे देखकर चार तिथंच खुशी हुये वे कौन थे? उत्तर-वे चार तिर्यच नेवला, सिंह, मूसर और बदर थे। प्र. १४५ - ऋषभ देव को वैराग्य कब हुआ? उत्तर-एक वार चैन वदी नवमी के दिन जन्मोत्सव मे नीला नाम की देवी को नृत्य करते-करते मृत्यु हो गयी। देह की ऐसी छण भगुरता देखकर उन्हे मगार से वैगग्य हो गया। प्र० १४६-उन्हे केवल ज्ञान कहाँ हुआ? उत्तर-उन्हे केवलज्ञान प्रयाग क्षेत्र मे हुआ। प्र० १४७-वर्षी तप किसे कहते है ? वह किसने किया ? उत्तर-मुनि होकर ऋपभदेव ने वहत आत्म ध्यान किया, छत् माह तक तो वे आत्म ध्यान मे ही रिथर गई रहे। इसके बाद भी सात मास तक पभ मुनिराज ने उपवास ही किए, क्योकि मुनि को किम विधि से आहार दिया जाता है यह किसी को मालम न था। इस प्रकार एक वर्ग में ज्यादा काल भोजन के विना बीत चुका परन्तु पभ मुनि को कोई कष्ट न था वे तो आत्म-ध्यान करते थे और आनद के अनुभव मे मग्न रहते थे। इसी को वर्षी तप कहते है। प्र० १४८-वर्षी तप का पारना किसने कराया? उत्तर-वर्षी तप का पारना गजकुमार श्रेयास ने कराया। प्र. १४६-भरत क्षेत्र में मोक्ष का दरवाजा किसने खोला ? उत्तर-भरत क्षेत्र मे मोक्ष का दरवाजा भगवान ऋपभ देव ने खोला।

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