Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 296
________________ ( 10 ) प्र० ८ तुम कभी क्या नहीं करोगे ? उत्तर- (१) हम आत्मदेव, सिद्ध प्रभु और गुरु की स्तुति करना कभी नही भूलेगे । (२) शास्त्र जहाँ तहाँ कभी नही रखेगे । (३) हिसा, झूठ, चोरी और रात्रि भोजन कभी नही करेगे । (४) कभी धर्म और दया नही छोड़ेगे । (५) कभी क्रोध, कपट, हट, लालच, भय, प्रमाद और निदा नही करेगे । (६) कभी जुआ नही खेले । (७) कभी दोष नही छिपावेगे । प्र० ८ - आत्म भावना भाने से क्या मिलता है ? उत्तर- आत्म भावना के भाने से आत्म स्वरूप की प्राप्ति होती है । प्र० ६० - 'सहजानन्दी शुद्ध स्वरूपी अविनाशी' कौन है ? उत्तर- सहजानन्दी गुद्ध स्वरूपी अविनाशी मै हूँ । प्र० ६१ - हमारे देव कौन है ? उत्तर- हमारे देव श्री अरहत भगवान है । प्र० ६२ - देह और जीव मे अमर कौन है ? उत्तर - जीव अमर है | प्र० ३ - " वंदन हमारा" में तुम किस-किस को वंदन करते हो ? उत्तर- " वदन हमारा" मे प्रभु जी व गुरु जी अर्थात् अरहत, सिद्ध और सब मुनिराजो को तथा धर्म शास्त्र, सव ज्ञानी, चैतन्य देव को तथा आत्म स्वभाव को वदन करते है । प्र० ९४ – एक बालक क्या देखना चाहता है ? उत्तर-- आतम देव कैसा है, और क्या करता है, एक बालक यह देखना चाहता है ।

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