________________
भिन्न ही है। (७) मुझ निज आत्मा के अलावा विश्व मे लोक प्रमाण असख्यात काल द्रव्य है-उनकी चाल मुझ जीव से भिन्न ही है। (८) मुझ निज आत्मा के अलावा विश्व मे धर्म-अधर्म-आकाश एकएक द्रव्य है-उनकी चाल मुझ जीव से भिन्न ही है। (6) मुझ निज आत्मा के अलावा विश्व मे लोक प्रमाण असख्यात काल द्रव्य हैउनकी चाल मुझ जीव से भिन्न ही है। ऐसा निज जीव तत्व का स्वरूप जानते-मानते ही तत्काल निर्जरा तत्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति कर क्रम से पूर्ण सुखीपना प्रगट हो जाता है । यह एक मात्र निर्जरातत्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि के अभाव का उपाय छहढाला की दूसरी ढाल मे बताया है।
प्र० २३-मोक्ष तत्त्व सम्बन्धी जीव की भूलरुप अगृहीत मिथ्यादर्शनादि और गृहीत मिथ्यादर्शनादि का स्वरुप छहढाला की दूसरी ढाल मे क्या-क्या बताया है ?
उ०-"शिवरुप निराकुलता न जोय।" निज आत्मा के आश्रय से सम्पूर्ण अशुद्धि का सर्वथा अभाव और सम्पूर्ण शुद्धि का प्रगट होना मोक्ष है । वह मोक्ष निराकुलतारुप सुख स्वरुप है और सुख का कारण है। किन्तु अज्ञानी (१) निराकुलता सुख को सुख नही माननेरुप मान्यता। (२) मोभ होने पर तेज मे तेज मिलने रुप मान्यता। (३) मोक्ष मे शरीर, इन्द्रियो तथा विषयो के बिना सुख कैसे हो सकने रुप मान्यता। (४) मोक्ष से पुन अवतार धारण करने रुप मान्यता । (५) स्वर्ग के सुख की अपेक्षा से अनन्तगुणा सुख मानने रुप मान्यता । (६) सिद्ध स्थान मे पहुँचने रुप मोक्ष रुप मान्यता । (७) जन्म-मरण-रोग-क्लेगादि दुःख दूर होने को मोक्ष मानने रुप मान्यता । (८) लोकालोक जानने से मोक्षपना मानने रुप मान्यता। (६) त्रिलोक पूज्यपना से मोक्ष मानने रुप मान्यता। .. ऐसी-ऐसी