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(५) सर्वन स्वभावी जान पदार्थ होने से म झ आत्मा ही अनुपम है। (६) मुझ निज आत्मा के अलावा विश्व मे अनन्त जीव द्रव्य है-इनकी चाल मुझ जीव से भिन्न ही है। (७) मुझ निज आत्मा के अलावा विश्व मे अनन्तानन्त पुद्गल द्रव्य है-इनकी चाल मुझ जीव से भिन्न ही है। (८) मुल निज आत्मा के अलावा विश्व मे धर्म-अधर्मआकाग एकेक द्रव्य हे-इनको चाल मुझ जीव से भिन्न ही है। (६) मुझ निज आत्मा के अलावा विश्व मे लोक प्रमाण असख्यात काल द्रव्य है-इनकी चाल मुझ जीव से भिन्न ही है। ऐसा निज जीवतत्व का स्वरुप जानते मानते ही तत्काल जीवतत्व सम्बन्धी जीव की भूल रुप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति कर क्रम से पूण सुखीपना प्रगट हो जाता है। यह एकमात्र जीवतत्व सम्बन्धी जीव की भूल रुप अगहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि के अभाव का उपाय छहढाला की दूसरी ढाल मे बताया है।
प्र० १३-अजीवतत्व सम्बन्धी जीन की मूल रुप अगृहीत मिथ्यादर्शनादि का स्वरुप छहढाला की दूसरी ढाल मे क्या-क्या बताया
उ०-तन उपजत अपनी उपज जान, तन नशत आपको नाग मान । (१) शरीर की उत्पत्ति (सयोग) होने से मै उत्पन्न हुआ और गरीर का नाश (वियोग) होने से मैं मर जाऊगा। (२) हाथ आदि से मैने स्पर्श किया। (३) जीभ से स्वाद लिया। (४) नासिका से सू घा । (५) नेत्र से देखा। (६) कानो से सुना। (७) मन से मैंने जाना। (८) मैं बोलता हूँ। (8) मै गमन करता हूँ और मैं ठहरता हूँ। (१०) मैं इस वस्तु का ग्रहण करता हूँ और इस वस्तु का मै त्याग करता हूँ। (११) मैं सांसारिक भोग भोगता है। (१२) मुझे गीत क्षुधा-तृपा रोग हो जाते है और कभी मुझे शीत-क्षुधा-तृपा रोग नही सताते है। (१३) मै स्यूल, मै कृश, मै बालक, मैं जवान, मै वृद्ध हूँ। (१४) मेरे हाथ-पैर को वीस ऊगलिया है। (१५) मेरी ऊगली कट