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उ०- शुभाशुभ विकार तथा पर के साथ एकत्व की श्रद्धा, ज्ञान और मिथ्या आचरण से ही जीव दुखी होता है, क्योकि कोई सयोग सुख-दुख का कारण नही हो सकता है ।
प्र० ४ - दुःखो का मूल कारण मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ ४६ में किसे बताया है।
उ०- वहा सब दुखो का मूलकारण मिथ्यादर्शन, अज्ञान और असयम है । (१) जो दर्शनमोह के उदय से हुआ अतत्त्व श्रद्धान मिथ्यादर्शन है, उससे वस्तु स्वरुप की यथार्थ प्रतीति नही हो सकती, अन्यथा प्रतीति होती है । (२) तथा उस मिथ्यादर्शन ही के निमित्त से क्षयोपशमरुप ज्ञान है वह अज्ञान हो रहा है । उससे यथार्थ वस्तु स्वरुप का जानना नही होता अन्यथा, जानना होता है । (३) तथा चारित्र मोह के उदय से हुआ कषायभाव उसका नाम असयम है, उससे जैसा वस्तु स्वरुप है वैसा नही प्रवर्तता, अन्यथा प्रवृति होती है । इस प्रकार ये मिथ्यादर्शनादिक है वे ही सर्व दुखो का मूल कारण है ।
प्र० ५ - वस्तु स्वरुप कैसा है ?
उ०- अनादिनिधन वस्तुये भिन्न-भिन्न अपनी मर्यादा सहित परिणमित होती है, कोई किसी के आधीन नही है, कोई किसी के परिणमित कराने से परिणमित नही होती। उन्हे परिणमित कराना चाहे वह कोई उपाय नही है, वह तो मिथ्यादर्शन ही है ।
प्र० ६ - तो सच्चा उपाय क्या है ?
उ०- जैसा पदार्थों का स्वस्प है वैसा श्रद्धान हो जाये तो सर्व दुख दूर हो जाये । .. भ्रमजनित दुख का उपाय भ्रम दूर करना ही है । सो भ्रम दूर होने से सम्यक् श्रद्धान होता है वही सत्य उपाय जानना । (मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ ५२ )