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(१६२) का सम्बन्ध नही है, क्योंकि इन सब द्रव्यो का और मुझ निज आत्मा का द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव पृथक-पृथक है । ऐसा जानकर ज्ञान-दर्शन उपयोगमयी निज आत्मा का आश्रय ले, 'तो मोक्षतत्त्व सम्बन्धी जीव को भूल रुप अगृहीत-गृहीत मिथ्या दर्शनादि का अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति कर क्रम से पूर्ण अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति होवे । यह उपाय छहढाला की दूसरी ढाल मे बताया है।
प्र० १२८-मोक्ष में आकुलता का सर्वथा अभाव है और पूर्ण स्वाधीन निराकुल सुख है इस बात को भूलकर शरीर के मौज शौक मे भी मोक्ष सुख रुप मान्यता को आपने मोक्षतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल रुप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि बताया परन्तु जो अपने को.ज्ञानों मानते है वे भो शरीर के मौज-शौक मे सुख है ऐसा कहतेसुने-देखे जाते है । क्या ज्ञानियो को भी मोक्षतत्त्व सम्बन्धो जीव की भूल रूप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि होते है ? '
उ.-ज्ञानियो को बिलकुल नहीं होते है । (१) क्योकि जिन, जिनवर और जिनवर वृपभो ने शरीर के मौज-शौक में ही अधिक सुख है ऐसी मान्यता को मोक्षतत्त्व सम्बन्धी जीवतत्त्व की भूलरुप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि बताया है, परन्तु ऐसे कथन को नही कहा है। (२) ज्ञानी जो वनते है वे निर्जरातत्त्व सम्बन्धी जीव कीभूल रूप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभाव करके ही बनते है। (३) ज्ञानियो को हेय-ज्ञेय-उपादेय का ज्ञान बर्तता है। (४) शरीर के मौज-शौक मे सुख है -ज्ञानी के ऐसे कथन को आगम मे अनुपचरित असदभूत व्यवहारनय से कहा है। , . ...
१. प्र० १२६-बाह्य पदार्थो के मिलाने मे ही सुख है ? इस वाक्य पर मोक्षतत्त्व सम्बन्धी जीव को भूल का स्पष्टीकरण कीजिये ? ।
उ०-प्रश्नोत्तर १२१ से १२८ तक के अनुसार उत्तर दो। ::