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बदौं पाचौं परम गुरु, सुर गुरु बदत जास । विघन हरन मगलकरन, पूरन परम प्रकाश ॥२१॥ चौबीसो जिनपद नमो, नमो शारदा माय । शिव मग साधक साधु नाम, रच्यो पाठ सुखदाय ॥२२॥
(६) आत्म ज्ञान की गाथा
आवो भाई तुम्हे सुनाएँ, गाथा आतम ज्ञान की, जिससे तडक-तडक गिर पडती कर्मों की सतान भी।
वन्दे जिनवरम् वन्दे जिनवरम् ॥टेक ।। लगा गधो के साथ अरे ज्यो सिंह कोई लासानी हो, या निज को अंग्रेज समझता कोई हिन्दुस्तानी हो, रे अनन्त वैभव का स्वामी निपट भिखारी बन फिरता। खाक छानता चौरासी की फिर भी पेट नहीं भरता हुई अरे नादानी मे यह दीन दशा भगवान की ।।१।। षट द्रव्यो का चक्र सुदर्शन जग मे चलता रहता है, वह बेरोक निरन्तर अपने सुन्दर पथ पर बढता है। किसकी हस्ती उसकी गति को रोके जो निज बल से, कोन अभागा सिंह वदन मे बढकर अपनी अंगुलि दे। यह अखण्ड सिद्धान्त बात यह सहज प्रकृति विज्ञान की ॥२॥ अणु-अणु की सत्ता स्वतन्त्र है द्रव्य मात्र स्वाधीन सभी, सब की सीमा स्यारी नहि आदान-प्रदान विधान कभी। सब को अपनी सीमा प्यारी अपना घर ही प्यारा है, अरे विश्व का शान्ति विधायक यह सिद्धान्त निराला है। यही वस्तु की मर्यादा है यही वस्तु की शान भी ॥३॥ जड़ चेतन छह द्रव्य विश्व मे न्यारे-न्यारे रहते है, युद्गल, धर्म, अधर्म, काल, आकाश इन्हे जड कहते है।