Book Title: Jain Siddhant Bhaskar
Author(s): Hiralal Jain, Others
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 9
________________ TEPHED श्रीजिनाय नमः जैन-सिद्धान्त-भास्कर जैनपुरातत्त्व और इतिहास-विषयक त्रैमासिक पत्र - 1 भाग ६ मार्च १९४०.। फाल्गुन वीर नि० सं० २४६६ . - - Connormance जैनविद्री अर्थात् श्रवण वेल्कोलं [लेखक-श्रीयुत प्रो० हीरालाल जैन, एम०ए०, एलएल० बी०] D स्वमस्त दक्षिण भारत मे ऐसे बहुत ही कम स्थान होंगे जो प्राकृतिक, सौन्दर्य मे, प्राचीन कारीगरी के नमूनों मे व धार्मिक और ऐतिहासिक स्मृतियों मे. 'श्रवणबेलगोल' की बराबरी कर सके। आर्य जाति और विशेषतः जैन जाति की लगभग ढाई हजार वर्ष की संभ्यता का इतिहास यहां के विशाल और रमणीक मन्दिरों में, अत्यन्त प्राचीन गुफाओं, अनुपम उत्कृष्ट मूर्तियो व सैकड़ों शिलालेखों मे अंकित पाया जाता है। यहां की भूमि अनेक मुनिमहात्माओ की तपस्या से पवित्र, अगणित धर्मनिष्ठ यात्रियों का भक्ति से पूजितःऔर बहुत से नरेशों व सम्राटों के दान से अलंकृत और इतिहास में प्रसिद्ध हुई हैं। ' .. __ यहां की धार्मिकता इस स्थान के नाम मे ही गर्भित है। श्रवण (श्रमण) नाम जैन मुनि का है और वेल्गोल कन्नड भाषा के 'बेल' और 'गोल' इन दो शब्दो से बना है जिनका अर्थ क्रमशः धवल और सरोवर होता है। इस प्रकार श्रवण-बेलगोल का अर्थ 'जैन मुनियो का धवल सरोवर' होता है जिसका तात्पर्य संभवत उस रमणीक सरोवर से है जो ग्राम के बीचोबीच अब भी इस स्थान की शोभा बढ़ा रहा है। जैनियों का प्राचीनतम केन्द्र होने से इस स्थान की प्रसिद्धि जैनविद्री नाम से भी है। श्रवणबेलगोल ग्राम मैसूर प्रान्त मे हासन जिले के चेन्नरायपट्टण तालुक'मे दो सुन्दर पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। इनमे से बड़ी पहाड़ी (दोड्डबेट) ग्राम से दक्षिण की ओर है और विन्ध्यगिरि कहलाती है। छोटी पहाड़ी (चिक्वेट्ट) ग्राम से उत्तर की ओर है और चन्द्रगिरि नाम से प्रख्यात है। विन्ध्यगिरि समुद्रतल से ३,३४७ फुट और नीचे के

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