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किरण ४]
धमशर्माभ्युदय की दो प्राचीन प्रतियाँ
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विद्यापुरं पुरं तत्र विद्याविभवसंभवं । पद्मः शर्करया ख्यातः कुले हुंवड़संज्ञके ॥२॥ तस्मिन्वंशे दादुनामा प्रसिद्धो भ्राता जातो निर्मलाख्यस्तदीयः। सर्वज्ञभ्यो यो ददौ सुप्रतिष्ठां तं दातारं को भवेत्स्तोतुमीशः ॥शा दादस्य पत्नी भुवि मोषलाख्या शीलांबुराशे. शुचिचंद्ररेखा। तन्नन्दनचाहणिदेविभा देपालनामा महिमैकधाम ॥४॥ ताभ्यां प्रसूतो नयनाभिरामो रंडाकनामा तनयो विनीतः । श्रीजैनधर्मेण पवित्रदेहो दानेन लक्ष्मी सफलां करोति ॥५॥ हानू-जासलसंज्ञकेऽभ्य शुभगे भार्ये भवेतां द्वये, मिथ्यात्वद्रुमदाहपावकशिखे सद्धर्ममार्गे रते। सागारव्रतरक्षणैकनिपुणे रतत्रयोद्भासिके, रुद्रस्येव नभोनदीगिरिसुते लावण्यलीलायुते ॥६॥ श्रीकुंदकंदस्य वभूव वंशे श्रीरामचंद (द्रः) प्रथितप्रभावः । शिष्यस्तदीयः शुभकीर्तिनामा तपोंगनावक्षसि हारभूतः ॥७॥ प्रद्योतते संप्रति तस्य पट्ट विद्याप्रभावेण विशालकीर्तिः। शिष्यैरनेकैरुपसेव्यमान एकांतवादादिविनाशवत्रम् ॥८॥ जयति विजयसिहः श्रीविशालस्य शिष्यो जिनगुणमणिमाला यस्य कंठे सदैव । अमितमहिमराशेधर्मनाथस्य काय
निजसुकृतनिमित्तं तेन तस्मै वितीर्णम् ॥९॥ अर्थात्-धर्मचक्रियों (तीर्थकरों) के तीर्थों और धनी मनुष्यों के कारण जो तीन भुवन में विख्यात है, उस गुर्जर (गुजरात) देश मे विद्या और वैभव से सम्पन्न विद्यापुर (बीजापुर ?) नाम का नगर है। वहाँ हूमड़ कुल मे एक पद्म नामक गृहस्थ विख्यात हुए जिनका पत्ना का नाम शकरा था। उसी वंश मे दाद हुए जिनके भाई का नाम निर्मल था। जिसने सनी को भी प्रतिष्ठा दी अर्थात् जैनमंदिरों की प्रतिष्ठा कराई, उस दाता की भला कौन नहीं प्रशंसा कर सकता है ? दाद की पत्नी का नाम मोपला था जो शीलवती और चन्द्ररेखा के समान पवित्र थी। उसके पुत्र का नाम महिमाधाम देपाल (देवपाल) था जिसकी चाहणी देवी नामक भायों से सुन्दर विनयशील रंडाक नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो दान कर करके अपनी लक्ष्मी को सफल करता है। उसकी हानू और जासल नाम की दो भार्यायें महादेव की गंगा
और पार्वती के सदृश थीं, जो सद्धर्ममार्ग मे रत, सागारव्रतों की रक्षा करनेवालों और रत्नत्रय को प्रकाशित करनेवाली थीं।