________________
किरण ४]
गोम्मट-मूर्ति की प्रतिष्ठाकालीन कुण्डली का फल
२६५
राहु फल-यह लग्न से तृतीय है अत एव शुभग्रह के समान शुभ फल का देनेवाला है। प्रतिष्ठासमय राहु तृतीय स्थान मे होने से, हाथी या सिह पराक्रम मे उसकी बराबरी नहीं कर सकते; जगत् उस पुरुष का सहोदर भाई के समान हो जाता है। तत्काल ही उसका भाग्योदय होता है। भाग्योदय के लिये उसे प्रयत्न नहीं करना पड़ता है ।
केतु का फल-यह लग्न से नवम में है अर्थात् धर्म-भाव में है। इसके होने से क्लेश का नाश होना, पुत्र की प्राप्ति होना, दान देना, इमारत बनाना प्रशंसनीय कार्य करना आदि बातें होती हैं। अन्यत्र भी कहा है“शिखी धर्ममावे यदा क्लेशनाशः
सुतार्थी भवेन्म्लेच्छतो भाग्यवृद्धिः ।” इत्यादि मूर्ति और दर्शकों के लिये तत्कालीन ग्रहों का फल-मूर्ति के लिये फल तत्कालीन चन्द्रकुण्डली से कहा जाता है। दूसरा प्रकार यह भी है कि चरस्थिरादि लम नवांश और त्रिंशांश से भी मूर्ति का फल कहा गया है।
लग्न, नवांशादि का फल लन स्थिर है और नवांश भी स्थिर राशि का है तथा त्रिंशांशादिक भी पङ् वर्ग के अनुसार शुभ ग्रहों के हैं। अत एव मूर्ति का स्थिर रहना और भूकम्प, विजली आदि महान् उत्पातों से मूर्ति को रक्षित रखना सूचित करते है। चोर, डाकू आदि का भय नही हो सकता। दिन प्रतिदिन मनोज्ञता बढ़ती है और चामत्कारिक शक्ति अधिक आती है। बहुत काल तक सब विन्न-बाधाओं से रहित हो कर उस स्थान की प्रतिष्ठा को बढ़ाती है। विधर्मियों का आक्रमण नहीं हो सकता और राजा, महाराजा सभी उस मूर्ति का पूजन करते है। सव ही जनसमुदाय उस पुण्य-शाली मूर्ति को मानता है और उसकी कीर्ति सब दिशाओं में फैल जाती है आदि शुभ बातें नवांश और लग्न से जानी जाती है। * न नागोऽथ सिंहो भुजो विक्रमेण प्रयातीह सिहीसते तत्समत्वम् ।
विद्याधर्मधनैर्युक्तो बहुभापी च भाग्यवान् ॥ इत्यादि अर्थ-जिस प्रतिष्ठाकारक के तृतीय स्थान में राहु होने से उसके विद्या, धर्म, धन और भाग्य उसी समय से वृद्धि को प्राप्त होते है। वह उत्तम वक्ता होता है। + एकोऽपि जीवो वलवांस्तनुस्थः सितोऽपि सौम्पोऽप्यथवा बली चेत् । दोपानशेपान्विनिहति सद्यः स्कंदो यथा तारकदैत्यवर्गम् ॥ गुणाधिकतरे लग्ने दोपेऽत्यल्पतरे यदि । सुराणां स्थापन तन कतरिप्टार्यसिद्धिदम् ॥ भावार्थ-इस लग्न में गुण अधिक हैं और दोप बहुत कम हैं अर्थात नहीं के बराबर हैं। अन पुन या लम सम्पूर्ण अरिष्टों को नाश करने वाला और श्रीचामुण्डराय के लिये मन्पूर्ण अभीष्ट अयों को देने माला सिद्ध हुना होगा।