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सार " जैन एन्ट्रीक्वेरी”
(भाग ५, अङ्क ३)
पृ० ६७-७४ – प्रो० चक्रवर्ती ने तामिल साहित्य के अन्य लघु-काव्यों का परिचय कराया है । वे (१) यशोधरकाव्य (२) चूड़ामणि (३) उदयनन् कथै (४) नागकुमार काव्यम् (५) और नीलसी हैं। यह सब काव्य जैन कवियों की रचनायें हैं । यशोधरकाव्य के रचयिता के नाम-धाम का पता नहीं है ।
पृ० ७५ – ७९ प्रो० घोषाल ने जैन सिद्धांत और जैनेतर साहित्य में 'मन' का परिचय कराया है । अथर्ववेद ( कांड २१, अनुवक १-९-५) में पांच इन्द्रियों के अतिरिक्त मन को गिनाया है । इसका भाव यह नहीं है कि मन भी इन्द्रिय है । यद्यपि उपरांत के वैदिक साहित्य में मन भी इन्द्रिय माना गया है । 'वेदान्तपरिभाषा' में मन को इन्द्रिय नहीं कहा हैं । कठोपनिषद् (३।१०) में अर्थों को इन्द्रियों के परे और मन को भी इन्द्रियों के परे बताया है । 'वेदांतसूत्र' (२।४।२७) भाष्य में कहा हैं कि मन यद्यपि इन्द्रियों से पृथक् बताया है, परन्तु स्मृतियों के आधार से वह भी इन्द्रिय हैं । जैन न्याय में मन को अनिन्द्रिय अथवा नोइन्द्रिय कहा है । परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि जैनी मन को इन्द्रिय नहीं मानते । शेष इन्द्रियों से वह भिन्न है ।
पृ० ८१-८८ अशोक विषयक हमारी लेखमाला में आगे अशोक के लेखों से बताया है। कि वह बौद्ध नहीं हुआ था । अशोक की स्टेटपॉलिसी जैनों की श्रहिंसा से बहुत सादृश्य रखती है। अशोक के लेखों के आधार से उसका जैनश्रद्धान बताया गया है। उसने जो स्तंभादि बनवाए वह जैनौं चिह्नों सहित कई जैन स्थानों जैसे वैशाली, गिरिनार आदि में हैं।
पृ० ८९ - ९५ प्रो० शास्त्री ने प्रकट किया है कि भास्कर की किरण २ मे प्रतिपादित वादीभसिंह को ११ वीं शताब्दी से कुछ पहले के विद्वान् होना चाहिये ।
पृ० ९७–९९ प्रो० उपाध्ये ने कई जिनमूर्तियों के लेख छपाए है । उनमे से कई यापनाय संघ के हैं । यह मूर्तियों दिगम्बर जैन मंदिरों मे विराजमान हैं ।
-का० प्र०