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करण ४]
गोम्मट-मूर्ति की प्रतिष्ठाकालीन कुण्डली का फल
उस समय की चन्द्रकुण्डली भौम - राहु १
गुरु शुक्र
शनिकेतु /
प्रतिष्ठाकर्ता के लिये लग्नकुण्डली का फल सूर्य-जिस प्रतिष्ठापक के प्रतिष्ठा-समय द्वितीय स्थान में सूर्य रहता है, वह पुरुष बड़ा भाग्यवान होता है। गौ, घोड़ा और हाथी आदि चौपाये पशुओं का पूर्ण सुख उसे होता है। उसका धन उत्तम कार्यों में खर्च होता है। लाभ के लिये उसे अधिक चेष्टा नहीं करनी पड़ती है। वायु और पित्त से उसके शरीर में पीड़ा होती है।
चन्द्रमा का फल-यह लग्न से चतुर्थ है इसलिये केन्द्र में है साथ ही साथ उच्च राशि का तथा शुक्लपक्षीय है। इसलिये इसका फल बहुत उत्तम है। प्रतिष्ठाकर्ता के लिये इसका फल इस प्रकार हुआ होगा।
चतुर्थ स्थान में चन्द्रमा रहने से पुरुष राजा के यहाँ सब से बड़ा अधिकारी रहता है। पुत्र और स्त्रियों का सुख उसे अपूर्व मिलता है। परन्तु यह फल वृद्धावस्था में बहुत ठीक घटता है। कहा है- "यदा बन्धुगोबान्धवैरत्रिजन्मा नवद्वारि सर्वाधिकारी सदैव" इत्यादि--
भौम का फल-यह लग्न से पंचम है इसलिये त्रिकोण में है और पंचम मंगल होने से पेट की अग्नि बहुत तेज हो जाती है। उसका मन पाप से बिल्कुल हट जाता है और यात्रा करने में उसका मन प्रसन्न रहता है। परन्तु वह चिन्तित रहता है और बहुत समय तक पुण्य का फल भोग कर अमरकीर्ति संसार मे फैलाता है। बुधफल-यह लग्न मे है। इसका फल प्रतिष्ठा-कारक को इस प्रकार रहा होगा
लग्नस्थ बुध कुम्भ राशि का होकर अन्य ग्रहो के अरिष्टों को नाश करता है और बुद्धि को श्रेष्ठ बनाता है, उसका शरीर सुवर्ण के समान दिव्य होता है और उस पुरुष को वैद्य, शिल्प आदि विद्याओं में दश बनाता है। प्रतिष्ठा के वें वर्ष मे शनि और केतु से रोग आदि