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२६० भास्कर
[भाग ६ श्रीकुन्दकुन्द के वंश में प्रभावशाली रामचन्द्र के शिष्य शुभकीर्ति हुए जो बड़े तपस्वी थे। इस समय उनके पद को अपनी विद्या के प्रभाव से विशालकीर्ति शोभित कर रहे हैं, जिनके अनेक शिष्य हैं और जो एकान्तवादियों को पराजित करनेवाले हैं।
विशालकीति के शिष्य विजयसिंह हैं, जिनके कंठ में जिनगुणों की मणिमाला सदैव शोभा देती है।
उसने यह भगवान् धर्मनाथ का काव्य (धर्मशर्माभ्युदय) पुण्यवृद्धि के निमित्त उनके लिए वितरण किया।
पहले के पद्यों में डाक तक जो वंशावली दी है, उससे आगे का सम्बन्ध स्पष्ट नहीं होता। संभव है, छह नम्बर के बाद का कोई श्लोक छूट गया होजो वितरणकर्ता का सम्बन्ध जोड़नेवाला हो। ऐसा मालूम होता है कि रुडाक की दो पत्नियों में से किसी एक का कोई पुत्र होगा जिसने धर्मशर्माभ्युदय की उक्त प्रति को दान किया है। ___ इस १७६ नम्बर वाली प्रति मे प्रति लिखने का समय नहीं दिया है। परन्तु रामचन्द्र शुभकीर्ति या विशालकीर्ति के समय का पता यदि अन्य साधनों से लगाया जा सके तो वह मालूम हो सकता है।
विद्यापुर गुजरात का बीजापुर ही मालूम होता है। वहाँ हूंबड़ जाति के जैनों की बस्ती अब भी है।
धर्मशाभ्युदय काव्य की प्रतियाँ जहाँ जहाँ हों, वहाँ के विद्वानों को चाहिए कि वे उनकी प्रशस्तियों को देखें और उनमे यदि कोई विशेषता हो, तो उसे प्रकाशित करने की कृपा करें।
गायकवाड़ ओरियण्टल सीरीज में प्रकाशित पाटणके भाण्डारों के सूचीपत्र में इन दोन प्रतियों का जो विवरण दिया है, उसी के आधार से यह नोट लिखा गया है।
बम्बई, २०-११-३९