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[ भाग ६
अब देखना है कि उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत मे बाहुबलीजी की प्रतिमा का विशेष प्रचार क्यों हुआ ? संसार का यह अटल नियम है कि जो जिस विषय मे अपने को निष्णात बनाना चाहता है, वह उस विषय के विशेषज्ञ को ढूंढता है । जैसे—धनुर्विद्या सीखने वाला एक योग्य धनुर्धर को एवं आयुर्वेद सीखनेवाला एक सुयोग्य आयुर्वेदज्ञ को । इस नियमानुसार क्षत्रिय वीरों के लिये संसार विजयी, प्रथम कामदेव, महाबाहु बाहुबली को छोड़ कर दूसरा कोई आदर्श व्यक्ति नहीं मिल सकता था । यही कारण है कि चावुण्डराय जैसे वीर - मार्तण्ड ने इन्हीं को अपना आदर्श मान लिया । कार्कल एवं वेार के शासक वीर क्षत्रियों ने भी पीछे इन्हों चावुण्डराय का अनुकरण किया है । वास्तव में वीर क्षत्रियों के लिये बाहुबला को छोड़कर इह पर दोनों के सर्वयोग्य पथ-प्रदर्शक दूसरा कोई नहीं मिल सकता है
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भास्कर