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मांस्कर
[ भाग ६
को उपस्थित करना ही पर्याप्त है:
१ "जब चालुक्य नरेश की सेना कन्नेगल को छावनी में पड़ाव डाले हुई थी उस समय महान् मन्त्री और दंडनायक गङ्गराज यह कहते हुये कि 'चलने दो' घोडे पर सवार हो गये, विना इस बात को परवाह किये कि रात में युद्ध करना होगा वह सरपट वढ़े चले गये और अपनी तलवार से भयभीत शत्रु सेना को आतुर बना दिया। मानो यह उनका खिलाड़ था-उन्होंने सब हो राजाओं को परास्त किया और उनकी सारी युद्ध-सामग्री और वाहनो को लाकर अपने प्रभु के सामने रख दिया। होयसल नरेश ने कहा-'मैं प्रसन्न ई-प्रसन्न हूं तुम्हारे भुज-विक्रम से। मांगो, जो वर चाहो !' इस महतो कृया को पाकर भी गंगराज ने धन सम्पत्ति को इच्छा नहीं को उनका मन तो जिनेन्द्र की पूजा में पगा हुआ था। उन्हों ने परमनामक ग्राम होयसल नरेश से प्राप्त करके जिन-पूजा के लिये अपनी माता पाचाल देवो और पत्नी लक्ष्मी देवी-द्वारा निर्मित जिनालयों को दान कर दिया !" (ले० नं०४५)
२ वीरगल्लु (लेख) न० ६१ (शक ८७२) से प्रकट है कि पुरुप ही नहीं स्त्रियों भी रणागण मे निज शौर्य प्रकट करके वीरगति प्राप्त करती थीं। इस वीरगल्लु मे लोकविद्याधर और उसकी पत्नी सावियव्वे का परिचय कराया गया है। कन्नड-भाषा के कुछ वाक्य देखिये
"श्री युवतिगे निज-विजय-श्री-युवतिये सवति येनिसे . . .. . .. .. . श्रावक-धर्मदोळ् दौरेयेनल् पेररिल्लेने सन्द रेवति-श्रावकि ताने सज्जनिकेयोळ् जनकात्मजे ताने रूपिनोलळ-देवकि ताने पेम्पिनोळुन्धति ताने जिनेन्द्र-भक्ति-सद्-भावदे सावियब्वे जिन-शासन देवते ताने काणिरे ॥ इत्यादि ।" ___ सावियव्वे रेवती, देवकी, सीता, अरुन्धती आदि सघश रूपवती, पतिव्रता और धर्मप्रिया थी। वह पक्की श्राविका (जैनो) थी-जिनभगवान् मे उसकी शासन देवता के सदृश भक्ति थी। वह सती अपने पति के साथ 'बागेयूर के युद्ध मे गई और वहाँ लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुई । लेख के ऊपर जो चित्र खुदा है उसमे वह स्त्री घोड़े पर सवार हुई हाथ मे तलवार लिए हुये एक हाथी पर सवार वीर का सामना करती हुई चित्रित की गई है। हाथी पर चढ़ा हुआ पुरुष इस वीराङ्गना पर वार कर रहा है ! यह थी उस समय की जैन युवतियों की वीरता!
३ लेख न० ६० भी एक 'वीरगल्लु' अर्थात् वीरगति को प्राप्त हुए वीर का स्मारक है। ... उसमें गगनरेश रकसमणि के वीर योद्धा 'व(ग' के शौर्य का बखान है। 'युद्ध मे इसने ऐसी वीरता दिखाई कि जिसकी प्रशंसा उसके विपक्षियों ने भी की थी।'