Book Title: Jain Siddhant Bhaskar
Author(s): Hiralal Jain, Others
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 37
________________ कीरमार्त्तण्ड काकुण्डराय [ लेखक श्रीयुत पं० के० भुजवली शास्त्री, विद्याभूषण ] anatan इन ऐतिहासिक महापुरुषों मेंवीरमार्त्तण्ड चावुण्डराय भी एक हैं। भारत का इतिहास इनका अमर नाम कभी भुला नहीं सकता । बल्कि इनके द्वारा निर्मापित श्रवणबेलगोल की वह अद्भुत विशाल मूर्त्ति जब तक मौजूद रहेगी तबतक संसार मे इनकी धवल कीर्त्ति अविच्छिन्न रूप से फैली रहेगी। एक बात हमें याद रखनी चाहिये कि जैसे वह मूति अद्भुत, अनुपम एवं विशाल है इसी प्रकार वीरमार्त्तण्ड का व्यक्तित्व भी सचमुच अद्भुत, अनुपम तथा महान् है । यद्यपि चावुण्डराय की जीवन घटनाओं का पूर्ण परिचय हमें प्राप्त नहीं है; फिर भी यत्र-तत्र उपलब्ध कीर्त्ति-गाथाओं से इनके महान् व्यक्तित्व का पता अवश्य लग जाता है । स्वरचित 'त्रिपष्टिलक्षणमहापुराण' (पृष्ठ ५) एवं श्रवणबेलगोल के विन्ध्यगिरिवाले शिलालेख (२८१) मे चावुण्डराय ब्रह्मक्षत्रियवंशज बतलाये गये हैं । इससे अनुमान होता है कि मूल में इनका वंश ब्राह्मण था, बाद क्षत्रियकर्म — असिकर्म को अपनाने से यह क्षत्रिय गिने जाने लगे । खेद की बात है कि दुर्भाग्य से इनके माता-पिता कौन थे और इनका जन्म कहाँ और किस तिथि को हुआ था आदि बातों का ठीक-ठीक पता नहीं चलता। यों तो 'भुजवलि 'चरित' मे लिखा है कि इनकी माता का नाम कलाल देवी था । हो, चावुण्डराय दीर्घकाल तक जीते रहे, यह अनुमान करना आसान है। क्योंकि इन्हें एक-दो नहीं, तीन शासकों के शासन काल मे काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। साथ ही साथ यह जानना भी सुलभ है कि चावुण्डराय के बहुमूल्य जीवन का अधिकांश भाग गंगों की राजधानी तलकाड में ही व्यतीत हुआ था । अजितसेनाचार्य के परम शिष्य 'गंगकुलाब्धिचन्द्र' 'गंगकुलचूडामणि', 'जगदेकवीर' थे । ‘धर्मावतार' आदि अन्वर्थं उपाधियों से विभूपित राचमल्ल (चतुर्थ) इनके प्रकृत आश्रयदाता जिस गंगवंश का सुदृढ राज्य मैसूर प्रान्त में लगभग ईसा की चौथी शताब्दी से ग्यारहवीं शताब्दी तक बना रहा, राचमल्ल उसी गंगवंश के सुशासक मारसिह के उत्तराधिकारी थे 1 गंगराजाओं के शासनकाल में वर्तमान मैसूर का बहुभाग उन्हीं के राज्य के अन्तर्भुक्त था, जो उस समय 'गंगवाडि' कहलाता था । गंगराज्य उस समय अपनी सर्वोत्कृष्ट दशा पर पहुंच गया था और आदि से ही इस राज्य का जैनधर्म से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा। बल्कि श्रवणबेलगोल के लेख नं ५४ (६७) एवं गंगवंश के अन्यान्य दानपत्रों से यह बात निर्विवाद सिद्ध होती है कि गंग-वंश की जड़ जमानेवाले जैनाचार्य सिंहनन्दी ही थे । इस कथन को 'गोम्मटसारवृत्ति' के रचयिता अभयचन्द्र त्रैविद्यचक्रवर्ती ने भी स्वीकार किया है। हेव्वूरु

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