Book Title: Jain Siddhant Bhaskar
Author(s): Hiralal Jain, Others
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 19
________________ किरण ४ ] श्रवणबेलगोल एवं यहां की श्रीगोम्मट - मूर्ति मराठी भाषाओं का उद्गम क्रमशः अर्द्धमागधी और महाराष्ट्री प्राकृत से हुआ प्रकट है और यह भी विदित है कि मराठी, कोङ्कणी एवं कन्नड भाषाओं का शब्द-विनिमय पहले बराबर होता रहा है। क्योंकि इन भाषा-भाषी देश के लोगों का पारस्परिक विशेष सम्बन्ध था । अब कोकणी भाषा में एक शब्द 'गोमटों' या 'गोम्मटो' मिलता है और यह संस्कृत के 'मन्मथ' शब्द का ही रूपान्तर है। यह अद्यापि 'सुन्दर' अर्थ मे ही व्यवहृत है । कोङ्कणी भाषा का यह शब्द मराठी भाषा मे पहुंच कर कन्नड भाषा में प्रवेश कर गया हो - कोई आश्चर्य नहीं । कुछ भी हो, यह स्पष्ट है कि गोम्मट संस्कृत के मन्मथ शब्द का तद्भवरूप है और यह कामदेव का द्योतक है । २११ श्रीयुत प्रो० के० जी० कुन्दनगार एम० ए० आदि एक दो विद्वान् इससे सहमत नहीं हैं । बल्कि कुन्दनगारजी का 'कर्णाटक - साहित्य - परिपत्पत्रिका भाग XXIII, पृष्ठ ३०४-३०५ में इसके सम्बन्ध मे एक लेख प्रकाशित भी हो चुका हैं। पर श्रीयुत गोविन्द पै अपने इसी मत को इसी किरण में अन्यत्र प्रकाशित अपने अंग्रेजी लेख ए० एन० उपाध्ये और श्रीयुत के० जी० कुन्दनगार आदि विशेष प्रकाश डालना चाहिये । मे समर्थन करते हैं । श्रीयुत मित्रवर विद्वानो को इस पर सप्रमाण अब प्रश्न हो सकता है कि बाहुबली की विशाल मूर्त्ति मन्मथ या कामदेव क्यों कहलायी । जैनधर्मानुसार बाहुबली इस युग के प्रथम कामदेव माने गये है । इसी लिये श्रवणबेलगोल मे या अन्यत्र स्थापित उनकी विशाल मूर्त्तियां उसके ( मन्मथ के ) तद्भवरूप 'गोम्मट' नाम से प्रख्यात हुई । बल्कि बाद मूर्तिस्थापना के इस पुण्यकार्य की पवित्र स्मृति को जीवित रखने के लिये आचार्य श्रीनेमिचन्द्रजी ने इस मूर्त्ति के संस्थापक चावुण्डराय का उल्लेख 'गोम्मटराय' के नाम से ही किया और इस नामको प्रख्याति देने के लिये ही चावुण्डराय के लिये रचे गये अपने 'पञ्चसंग्रह' ग्रंथ का नाम उन्होंने 'गोम्मटसार' रख दिया | जैनियों में बाहुबली की मूर्ति की उपासना कैसे प्रचलित हुई यह भी एक प्रश्न उठ खड़ा होता है । इसका प्रथम एवं प्रधान कारण यह है कि इस अवसर्पिणी-काल मे सब से प्रथम अर्थात् अपने श्रद्धय पिता आदि तीर्थङ्कर वृषभ स्वामी से भी पहले मोक्ष जाने वाले क्षत्रिय वीर बाहुबली ही थे। मालूम होता है कि इस युग के आदि में सर्व प्रथम मुक्ति पथ-प्रदर्शक के नाते आपकी पूजा, प्रतिष्ठा आदि जैनियों में सर्वमान्य रूप से प्रचलित हुई । दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि बाहुबली के अपूर्व त्याग, अलौकिक आत्मनिग्रह और नैजबन्धुप्रेम आदि असाधारण एवं अमानुषिक गुणों ने सर्वप्रथम अपने बड़े भाई सम्राट् भरत को इन्हें पूजने को बाध्य किया होगा, वाद भरत का ही अनुकरण औरों ने भी । + विशेष जिज्ञासु भास्कर भाग ४, किरण २ में प्रति श्रीयुत गोविन्द' को मूर्ति गोम्मट क्यों कहलाती है ?' शीर्षक लेख देखे ।

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