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किरण २ .
श्रवणबेलगोल
बढ़ा रही शोभा शरीर पर चढ़ लतिका शुभशाली मानों दिव्य कलाओं ने अपने हाथों ही ढाली
इस उन्नति के मूल केन्द्र में जीवन ज्योति जगाओ वन्दनीय हे जैनतीर्थ तुम युग-युग में जय पाओ ॥
ऊँचे सत्तावन सुफीट पर नभ से शीस लगाए शोभा देती जैनधर्म का उज्ज्वल यश दरशाए जिसने कौशल-कला-कलाविद के सम्मान बढाए देख-देख हैदर-टीपू सुल्तान जिसे चकराए
आओ इसका गौरव लख अपना सम्मान बढ़ाओ वन्दनीय हे जैनतीर्थ तुम युग-युग में यश पाओ ॥
गंग-वंश के राचमल्ल नृप विश्व-कीर्ति-व्यापक हैं नृप-मन्त्री चामुण्डरायजी जिसके संस्थापक हैं जो निर्माण हुआ नौसे नब्बे में यशवर्द्धक है राज्य-वंश मैसूर आजकल जिसका संरक्षक है ।
उसकी देख-रेख रक्षा में अपना योग लगाओ वन्दनीय हे जैनतीर्थ तुम युग-युग में जय पाओ ॥
कहे लेखनी पुण्य-तीर्थ क्या गौरव-कथा तुम्हारी विस्तृत कीर्ति-सिन्धु तरने में है असमर्थ विचारी नत मस्तक अन्तस्तल तन-मन-धन तुम पर बलिहारी शत-शत नमस्कार तुम को हे नमस्कार अधिकारी
फिर सम्पूर्ण विश्व में अपनी विजय-ध्वजा फहराओ
वन्दनीय हे जैनतीर्थ तुम युग-युग में जय पाओ ॥ * मूर्ति स्थापना-काल अभी ठीक निश्चित नहीं हो पाया है।
-के० बी० शास्त्री।