Book Title: Jain Siddhant Bhaskar
Author(s): Hiralal Jain, Others
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 10
________________ २०३ भास्कर [भाग ६ मैदान से लगभग ४७२ फुट ऊँचा है। कभी-कभी इन्द्रगिरि नाम से भी इस पर्वत का सम्बोधन किया जाता हैं। पवत के शिखर पर पहुंचने के लिये नीचे से कोई ५०० सीढ़ियां बनी हुई हैं। ऊपर समतल चौक है जिसके चारो-ओर एक छोटा सा घेरा है। इस घेरे मे बीच-बीच मे तलघर हैं जिनमे जैन मूर्तियां विराजमान हैं। इस घेरे के चारो ओर कुछ दूरी पर एक भारी दीवाल है जो कहीं-कहीं प्राकृतिक शिलाओं से बनी हुई है। चौक के ठीक बीचोबीच गोम्मटेश्वर की वह विशाल खगासन मूर्ति है जो अपनी दिव्यता से उस समस्त भूभाग को अलंकृत और पवित्र कर रही है। यह नग्न, उत्तरमुख खड्गासनमूर्ति समस्त संसार की आश्चर्यकारी वस्तुओं मे से है। सिर के बाल धुंघराले, वक्षस्थल चौड़ा, विशाल बाहु नीचे को लटकते हुए और कटि किचित् क्षीण है। घुटनो से कुछ ऊपर तक बमीठे दिखाये गये हैं जिनसे सर्प निकल रहे है। दोनों पैरों और वाहुओं से माधवी लता लिपट रहा है। मुख पर अपूर्व कान्ति, अगाध शान्ति और अटल ध्यानमुद्रा विराजमान है। मूर्ति क्या है मानों तपस्या का अवतार ही है। दृश्य बड़ा ही भव्य और प्रभावोत्पादक है। सिंहासन एक प्रफुल्ल कमल के आकार का है। इस कमल पर बायें चरण के नीचे तीन फुट चार इञ्च का माप खुदा हुआ है जिसको कहा जाता है, अठारह से गुणित करने पर मूति की ऊँचाई निकलती है। जो माप लिये गये है उनसे मूर्ति की ऊँचाई कोई ५७ फुट पाई गई है। निस्सन्देह मूर्तिकार ने अपने इस अनुपम प्रयास मे अपूर्व सफलता प्राप्त की है। एशियाखंड ही नही समस्त भूतल का विचरण कर आइये, गोम्मटेश्वर की तुलना करनेवाली मूर्ति आपको शायद ही कही दृष्टिगोचर होगी। रामसेस या अबू सिम्बल की अत्यन्त प्राचीन मूर्तियां मानो इसी दिव्य मूर्ति के सामने लज्जित होकर धराशायी हो गयी हैं। बड़े-बड़े पश्चिमीय विद्वानों के मास्तष्क इस मूर्ति की कारीगरी पर चक्कर खा गये है। इतने भारी और प्रबल पाषाण पर सिद्धहस्त कारीगर ने जिस कौशल से अपनी छैनी चलाई है उससे भारत के मूर्तिकारों का मस्तक सदैव गर्व से ऊँचा उठा रहेगा। कोई एक हजार वर्ष से यह प्रतिमा सूर्य, मेघ, वायु आदि प्रकृति देवी की अमोघ शक्तियों से टक्कर ले रही है, पर अब तक उसमे कोई भारी क्षति नहीं हुई। मानो मूर्तिकार ने उसे आज ही उद्घाटित किया हो। गोम्मट स्वामी कौन थे और उनकी यह अनुपम मूति किस भाग्यवान् ने निर्माण कराई इसका विवरण श्रवणबेलगोल के शिलालेख व भुजवनि-शतक, भुजबलि-चरित, गोम्मटेश्वर चरित, राजावलिकथा व स्थलपुराण नामक ग्रन्थों में पाया जाता है। आदि तीर्थङ्कर ऋषभदेव के दो पुत्र थे भरत और बाहुबली। भरत चक्रवर्ती राजा हुए और बाहुबली ने तपोरूपी साम्राज्य स्वीकार करके केवल ज्ञान प्राप्त किया। कहा जाता है भरतजी ने उनकी ५२५ धनुषप्रमाण मूर्ति स्थापित कराई थी। उसी का प्रशंसा सुन कर गंगनरेश राचमल्ल के मंत्री

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