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श्रणवेल्गोल एक यहाँ की श्रीगोम्मट-मूर्ति
[लेखक-श्रीयुत पं० के० भुजवली शास्त्री, विद्याभूपण]
श्रीमान्नाभेयजातः प्रथममनसिजो नाभिराजस्य नप्ता देहं संसारभोगं तृणमिव मुमुचे भारते संगरे यः । कायोत्सर्ग वितन्वन् महदुरगलसद्गर्भवल्मीकजुष्टम् सोऽयं विन्ध्याचलेशो स जयतु सुचिरं गोम्मटेशो जिनेशः ॥
यहाँ तो दक्षिण भारत मे कोपण (कोप्पल) आदि जैनियों के और भी कई स्थान ऐसे हैं, जो कि एतिहामिक, धार्मिक एवं कलाकौशलादि की दृष्टि से कम महत्त्व के नहीं हैं। फिर भी इन सबों में श्रवणबेलगोल को प्रथम स्थान दिया जाना सर्वथा समुचित ही है। यहाँ के विशाल और चित्ताकर्षक देवालयों, अतिप्राचीन गुफाओं, अनुपम मनोज्ञ मूर्तियों तथा सैकड़ों शिलालेखों में आर्यजाति और विशेषतया जैनजाति की लगभग पच्चीस सौ वर्ष की सभ्यता का जीता-जागता इनिवृत्त सुरक्षित है। यहाँ का भू-भाग अनेक प्रातःस्मरणीय मुनिअर्जिकाओं को दिव्य तपस्या से पुनीत, बहुत से धर्मनिष्ठ श्रावक-श्राविकाओं के समाधि-मरण से पवित्र, असंख्य श्रद्धालु यात्रियों के भक्तिगान से मुखरित और अनेक नरेशों एवं सम्राटों की वदान्यता से विभूपित है। यहाँ को धार्मिकता इस क्षेत्र के नाम में ही छिपी हुई है। क्योंकि श्रवण (श्रमण) वेल्गोल इस शब्द का व्युत्पत्त्यर्थ जैनमुनियों का श्वेतसरोवर होता है। सात-आठ सौ वर्ष प्राचीन शिलालेखों मे भी इस स्थान के नाम श्वेतसरोवर, धवलसरोवर तथा धवलसर पाये जाते हैं। हो, गोम्मट-मूर्ति के कारण इसका नाम गोम्मट-पुर भी है।
श्रवणबेलगोल यह ग्राम मैसूर राज्य मे हासन जिला में चेन्नराय पट्टण तालुक मे दो सुन्दर पर्वती के वीच वसा हुआ है। इनमे बड़ा पर्वत (दोडवेट्ट) जो ग्राम से दक्षिण की ओर है 'विन्ध्यगिरि' कहलाता है। इस पर गोम्मटेश्वर की वह विशाल लोकविश्रुत मूर्ति स्थापित है जो मीलों की दूरी से दर्शकों की दृष्टि इस पवित्र तीर्थ की ओर आकृष्ट करती रहती है। इस मति के अतिरिक्त पर्वत पर कुछ जैन मन्दिर भी विद्यमान है। दूसरा छोटा पर्वत (चिकोट) जो ग्राम से उत्तर की ओर हैं 'चन्द्रगिरि' के नाम से प्रसिद्ध है। अधिकांश एवं प्राचीनतम लेख और मन्दिर इसी पर्वत पर हैं। कुछ मन्दिर, लेख आदि ग्राम की सीमा के भीतर है और शेप इसके आसपास के ग्रामों मे ।