Book Title: Jain Satyaprakash 1936 05 SrNo 11 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૩૫૬ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ २४ ॥ आर्यावृत्तम् ॥ वियलियविग्यसमूह-पसण्णवयणं विसिट्टगइवयणं ।। मुत्तिप्पयपयसेवं सिरिकेसरियाविहुं वंदे ॥ ७॥ ... जह तुम्हाणं सोक्खं-पियं तहा चेव सव्वजीवाणं ॥ इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥ ८ ॥ हियमियसच्चं वयणं-वत्तव्वं विष्णसव्वजीवेहिं ।। इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥९॥ चोरिकं दुग्गइयं-हेयं हिंसाणिबंधणं सिग्धं ॥ इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहं वंदे ॥१० ।। सीलं मुत्तिनियाणं-विग्योवसमं च संजमप्पाणं ॥ साहिज्जकरणदक्खा-सीलेणं वासवा णियमा ॥११॥ दीहाउतेयवंता-दढसंहणणा महाबला पुरिसा ॥ तह सुंदरसंठाणा-हवंति सीलप्पहावेणं ॥ १२ ॥ अच्चब्भुयमाहप्पं-णचा सीलस्स रकवणं कुज्जा ॥ इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥१३॥ मुच्छा भवभावेमुं-णो कायव्वा पयंडदुक्खदया । इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥ १४ ॥ कायव्वो भव्यणरा !- संतोसो भोगदविणपमुहेसुं । इय सिकवा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥ १५ ॥ कोहो चारित्तरिऊ-करुणाभावायहो सया चजो ॥ इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥ १६ ॥ कडुफलओ पीइवहो-पुण्णोदयकित्तिसंतिहो कोहो । इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥ १७ ॥ माणजओ कायबो-महवभावेण भव्वपुरिसेहिं ॥ इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥ १८ ॥ माया तिरिगइयाया-ण विहेया अप्पवंचणा कइया ।। इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥ १९ ॥ समविद्धंसो लोहो-धम्माराहणविमुत्तिविग्घयरो । इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥ २० ॥ (अपूर्ण) For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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