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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ नथी, कारण के कारणे अनेक भोजनथी आपवान कहे छे, आथी विपरीत करवामां चारित्रनो नाश थतो नथी। सर्वसावद्यत्यागरुप मुनिना मृत्युनो भय समायेलो छः आवा प्रसंगे चारित्र छे अने एक वखतना भोजनमा जेम . शुं करवू ? मुनिने मरवा देवा के अनेकवार चारित्र सचवाय छे तेम कारणे अनेक वखतना थोडो थोडो आहार आपवो ? मरवा देवा भोजनमां पण चारित्र सचवाशे ।
एम तो कही शकाशे नहि । कदाच एम
कहेवामां आवे के तेना आयुषनो सम्बन्ध कदाच एम कहो के अनेकवारना
होय तेम थाय, पण अनेकवार भोजन नहि भोजनमां बे त्रणवार गोचरा जवा
करावीए, तो ते पण व्याजबी नथी । जेम आववा विगेरने लइने विराधना थशे ।
दिगम्बर मान्यता प्रमाणे सामान्यत: पर घेर जो बे वखतमा विराधना थती होय
जइने त्यां भोजन करवानुं छे, पात्रा विगैरे तो एक वखतमां तमारे पण तेना करतां
राखवानां नथी, छतां पण मंदग्लानादिकारणे अडधी विराधना थशे । तेमां उपयोग अने
पात्रा राखयां अने गृहस्थने त्यांथी आहार प्रयोजन छे माटे न थाय एम कहो तो अमारे
लावीने आपवानां कारणिक विधानो छे तेमां पण बे वखतमा उपयोग अने प्रयोजन छे ।
सामान्य मार्गनो बाध करी कारणे ते मार्ग वळी जे वस्तु उपयोगथी एक वखत कराय
स्वीकारबो पड्यो तेम अंहीया पण सामान्यतः छे तेमां दोष नथी तो ते वस्तु कारणे
एक भोजननो बाध करीने मुनिने बचाववा उपयोगथी बे वखत कराय तेमां दोष शो! माटे अनेकवार भोजननो स्वीकार करवो पडशे। कदाच एम कहो के जो दोष नथो तो पछी तमारा शास्त्रमा पण सामान्यतः एक वखतने कदाच कहा के पहेलुं मानीशुं अने आ माटे गोचरी केम बताववामां आवेल छ ? तेना नहि मानीए तो अर्धजरतीय न्यायने लइने ते जवाबमा जणाववानुं जे सामान्यतः एक हास्यास्पद थशे । कदाच एम कहो के आ वखतथी निर्वाहनो संभव छे माटे। तो पछी अनेक तो कारणे अनेकवार भोजन छे तो तेना वखत शा माटे बतावेल छे ? ज्यां निर्वाह न थइ जवाबमां जणाववान के अमारामां पण कारणे शकतो होय तेने माटे तथा कारणे दिगम्बरोने ज अनेक भोजन बताववामां आवेल छे. पण दिनमां अनेकवार भोजन मानवू पडे छे। अने एक भोजन छे ते पण कारणे ज छ । जेम कोइ मुनि अत्यन्त बीमार अवस्थामां कारण सिवाय नहि । सामान्यतः बहुलताने पडेल छे, गोचरी जवा आववानी बीलकुल आश्रीने एकवार भोजन जणाववामां आवेल शक्ति नथी, बीजाए लावी आपेल आहार पण छे परंतु तेनुं तात्पर्य एवं नथी के गमे तेवू एकी साथे आपो शकाय तेवी स्थिति नथी, कारण होय तो पण एकथी वधारे वखत खाइ वैद्य पण बे बे कलाकना आंतरे आहार शकाय ज नहि । (अपूर्ण)
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