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भूगोल-खगोल विषयक साहित्य : २५ ज्योतिलौकका कथन भी सतरह अधिकारोंके द्वारा किया गया है । वे सतरह अधिकार है-ज्योतिषी देवोंका निवास क्षेत्र, भेद, संख्या, विन्यास, परिमाण, चर ज्योतिषियोंका संचार, अचर ज्योषियोंका स्वरूप, आयु, आहार, उछ्वास, उत्सेध, अवधिज्ञान, शक्ति, उत्पत्ति व मरण, आयुके बन्धक भाव, सम्यग्दर्शन ग्रहण करनेके कारण और गुणस्थानादि वर्णन ।
यह अधिकार खगोलसे सम्बद्ध है। जैनमान्य खगोलका परिचय कराते हुए पहले लिख आये हैं कि सम पृथ्वीतलसे ७९० योजनसे लेकर नौ सौ योजनकी ऊँचाई तक ज्योतिष मण्डलका अवस्थान है। उनमेंसे चन्द्रको इन्द्र और सूर्यको प्रतीन्द्र माना है। जम्बूद्वीपमें दो चन्द्र और दो सूर्य हैं। दोनोंका चार क्षेत्र जम्बूद्वीपमें १८० योजन और लवण समुद्रमें ३३०१८ योजन है। सूर्य विमानका व्यास ४८/६१ योजन है और चन्द्र विमानका व्यास ५६/६१ योजन है।
चन्द्र विमानके नीचे राहु विमान है । उसका विस्तार कुछ कम एक योजन है। श्यामवर्ण है। उसकी गति के कारण ही चन्द्रग्रहण और प्रतिदिन कलाकी हानि वृद्धि होती है। पक्षान्तर रूपसे यह भी कह दिया है कि स्वभावसे ही चन्द्रकी कलायें घटती और बढ़ती हैं । सूर्यके गमनके कारण दिनकी हानि वृद्धि भी बतलाई है। इस अधिकारमें ६१९ गाथाएँ हैं । अन्तमें कुछ गद्य भाग भी है।
सुरलोक नामक आठवें महाधिकारमें २१ अवान्तर अधिकार हैं। जो इस प्रकार है-निवास क्षेत्र, विन्यास, भेद, नाम, सीमा, संख्या, इन्द्र, विभूति, आय, उत्पत्ति और मरणका अन्तर, आहार, उछ्वास, उत्सेध, देवलोक सम्बन्धी आयुके बन्धक भाव, लौकान्तिक देवोंका स्वरूप, गुणस्थानादिका स्वरूप, सम्यग्दर्शन ग्रहणके विविध कारण, स्वर्गोंसे आगमन, अवधि ज्ञान, देवोंकी संख्या, और शक्ति
और योनि । किन्तु इन अधिकारोंमें से उछ्वास और उत्सेधका कथन नहीं है। तथा १३ आयुबन्धकभाव नामक अधिकारके आगे उत्पत्ति और सुख नामक दो ऐसे अधिकारोंका कथन है जिनके नाम इक्कीस अधिकारोंमें नहीं हैं।
इस महाधिकारमें स्वर्ग लोकका वर्णन है। इसमें ७०३ गाथाएँ हैं । और एक शार्दूल विक्रीडित है। कुछ गद्य भाग भी है।। ___यह अधिकार सबसे छोटा है। इसमें मुक्त जीवोंका वर्णन पांच अधिकारोंके द्वारा किया गया हैं। वे पाँच अधिकार है-सिद्धोंकी निवास भूमि, संख्या, अवगाहना, सुख और सिद्धत्वके कारणभूत भाव । इस अधिकारमें केवल ७७ गाथाएं हैं।
यह त्रिलोक प्रज्ञप्तिका सामान्य विषय परिचय जानना चाहिये । त्रिलोक प्रज्ञप्तिके कुछ विशेष कथन
त्रिलोक प्रज्ञप्तिकी जहाँ कुछ अपनी विशेषतायें हैं जिन पर ध्यान दिया जाना