Book Title: Jain Pratimavigyan
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 9
________________ जिन्हें यह ग्रन्थ समर्पित है जैनविद्या के निष्काम सेवक लाला हरजसरायजी जैन : एक परिचय भगवान् पार्श्वनाथ की जन्म स्थली एवं विद्यानगरी काशी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के समीप जैन धर्म और दर्शन के उच्चतम अध्ययन केन्द्र के रूप में पारवनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान को मूर्तरूप देने एवं विकसित करने का श्रेय यदि किसी व्यक्ति को है, तो वह लाला हरजसरायजी जैन को है जिनके अथक परिश्रम से इस संस्थान के प्रेरक पं सुखलालजी का चिर प्रतीक्षित सुन्दर स्वप्न साकार हो सका । लाला हरजसरायजी का जन्म अमृतसर के प्रसिद्ध एवं सम्मानित लाला उत्तमचन्दजी जैन के परिवार में हुआ, आपका जन्म अमृतसर में आसोज शुदी ७ मंगलवार आपके पिता का नाम लाला जगन्नाथजी जैन था । जो अपनी दानशीलता तथा मर्यादा की रक्षा के लिए प्रसिद्ध रहा है । सम्वत् १९५३, तदनुसार दिनांक १३ अक्तूबर १८९६ ई० को हुआ । ये अपने पिता के द्वितीय पुत्र हैं । इनके अन्य भ्राता स्व० लाला रतनचन्दजी जैन तथा लाला हंसराजजी जैन थे । सन् १९११ में १५ वर्ष की आयु में इनका विवाह-संस्कार श्रीमती लाभदेवी से सम्पन्न हुआ, जो स्यालकोट ( अब पाकिस्तान में ) के प्रसिद्ध हकीम लाला बेलीरामजी जैन की पुत्री थीं । यह परिवार भी अपने मानवीय एवं उदार के लिए प्रसिद्ध रहा है । श्रीमती लाभदेवी के भाई लाला गोपालचन्द्रजी जैन विभाजन के पश्चात् भी पाकिस्तान में ही रहे तथा अपनी योग्यता के कारण पाकिस्तान सरकार से सम्मानित भी हुए । आपने सन् १९१९ में गवर्नमेन्ट कालेज, लाहौर से बी० ए० की शिक्षा पूर्ण की। वह युग राष्ट्रीय आन्दोलनों का युग था । गांधीजी के आह्वान पर सम्पूर्ण देश में सामाजिक व राजनीतिक पुनर्जागरण की हवा फैल रही थी । पराधीन भारत में देशभक्ति को प्रोत्साहन देने के लिए देश में निर्मित वस्तुओं के उपभोग पर बल दिया जा रहा था तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया जा रहा था । इन सबका प्रभाव युवक हरजसराय पर भी पड़ा। वे उसी समय से खद्दरधारी हो गए एवं देश में धार्मिक तथा सामाजिक कुरीतियों को मिटाने और राजनैतिक चैतन्यता लाने के कार्य में जुट गये । राष्ट्रीय पद्धति पर शिक्षा देने के लिए १९२९ में अमृतसर में श्रीराम आश्रम हाई स्कूल की स्थापना हुई । बाबू हरजसरायजी इसके प्रथम मंत्री बने । समाज के अग्रगण्य व्यक्तियों द्वारा मुक्तहस्त से दिये गये दान से यह संस्था पुष्पित तथा पल्लवित हुई । इसकी सबसे प्रमुख विशेषता सहशिक्षा थी । सामाजिक तथा धार्मिक अन्धविश्वास को जड़ से समाप्त करने का सबसे सुन्दर उपाय यही था कि नर और नारी दोनों को समान शिक्षा दी जाय। यह संस्था अब भी बहुत ही सुचारु रूप से चल रही है । १९२९ में सम्पूर्ण आजादी का नारा देने के लिए आहूत लाहौर कांग्रेस में आपने एक सदस्य के रूप में सक्रिय भाग लिया । इसके अतिरिक्त आप कई प्रमुख समितियों के सदस्य रहे, जैसे सेवा समिति, अमृतसर स्काउट एसोशिएशन आदि । १९३५ में पूज्य श्री सोहनलालजी म० मा० के देहावसान पर समाज ने उनका स्मारक बनाने के लिए २५००० ) रु० एकत्र किया तथा हरजसरायजी को इसकी व्यवस्था का कार्यभार सौंपा। आपने इस कार्य को बहुत सुन्दर ढंग से पूर्ण किया । १९४१ में ये बम्बई जैन युवक कांग्रेस के प्रधान बने तथा अखिल स्थानकवासी जैन कांफ्रेन्स में खुलकर भाग लिया । समग्र क्रान्ति के प्रणेता श्री जयप्रकाश नारायण से भी आपका घनिष्ठ सम्पर्क रहा तथा कई अवसरों पर उन्हें सामाजिक कार्यों के लिए आर्थिक सहयोग भी प्रदान किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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