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प्रमाणके भेद
१५७ उत्तर-दूसरेके कहनेसे जो ज्ञान होता है वह उक्त है और स्वतः ही जान लेना निसृत है।
शंका-श्रोत्र, घ्राण, स्पर्शन, रसना ये चारों इन्द्रियाँ प्राप्यकारी हैं अर्थात् प्राप्त पदार्थको जानती हैं, अतः इनसे अनिसृत और अनुक्त शब्दादिका ज्ञान कैसे होगा।
उत्तर-जैसे चिउँटी वगैरहको घ्राण और रसना इन्द्रियसे दूरवर्ती गुड़ आदिको गन्ध और रसका ज्ञान हो जाता है वैसे ही अनिसृत और अनुक्त शब्दादि का भी ज्ञान जानना चाहिए। ___ इनमें से उक्तका सम्बन्ध केवल श्रोत्रेन्द्रियके साथ तो ठीक बैठ जाता है किन्तु अन्य इन्द्रियोंके साथ नहीं बैठता; क्योंकि जो बात शब्दके द्वारा कही जाये वही उक्त है और शब्द श्रोत्रेन्द्रियका विषय है। अकलंकदेवने इसे इस प्रकार घटित किया है-कोई आदमी दो रंगोंको मिलाकर कोई तीसरा रंग बनाना दिखला रहा है। उसके कहनेसे पहले ही उसके अभिप्रायको जान लेना कि आप इन दोनों रंगोंको मिलाकर अमुक रंग बनायेंगे, यह अनुक्त रूपका ज्ञान है और कहनेपर जानना उक्त रूपका ज्ञान है। चूंकि रूप चक्षुका विषय है अतः यह चक्षुविषयक उक्त और अनुक्त ज्ञान है । इसी तरह स्पर्श, रस, गन्धको लेकर स्पर्शन, रसना, और घ्राण इन्द्रियके साथ उक्त और अनुक्तको घटित कर लेना चाहिए ।
अनिमृत ज्ञान और अनुमानादिक अनिसृत ज्ञानका स्वरूप बतलाते हुए श्री गोम्मटसार जीवकाण्डकी 'टीकाओंमें लिखा है-'जलके बाहर निकली हुई हाथीको राँडको देखकर जलमें डूबे हुए हाथीको जान लेना अनिसृत ज्ञान है । जिसके बिना जो नहीं होता उसको उसका साधन कहते हैं । जैसे अग्निके बिना धुआँ नहीं होता अतः अग्नि साध्य है और धूम साधन है। साधनसे साध्यके जाननेको अनुमान ज्ञान कहते हैं । ऊपरके दृष्टान्तमें सूंड साधन है और हस्ती साध्य है। सैंडसे हस्तीका ज्ञान हुआ अतः यह अनुमान ज्ञान है तथा स्त्रीके मुख अथवा गवयको देखकर चन्द्रमा अथवा गायका ज्ञान होना भी अनिसृत ज्ञान है। सो किसीको स्त्रीके मखको देखकर चन्द्रमाका स्मरण हो आया क्योंकि मुखमें और चन्द्रमामें समानता है। अतः यह अनिसृत चन्द्रमाका ज्ञान स्मृति प्रमाण हुआ। इसी तरह जंगल में 'गवय' पशुको देखते ही गौका स्मरण होनेपर 'गौके समान गवय'
१. गा० ३१३ ।
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