Book Title: Jain Nyaya
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 330
________________ श्रुतके दो उपयोग ३१५ और तब प्रत्येक के लिए अलग-अलग शब्दका प्रयोग करना निष्फल ठहरेगा । जैसे शब्द के भेदसे अर्थका भेद अवश्यंभावी है वैसे ही अर्थके भेदसे भी शब्दका भेद अवश्यंभावी है, नहीं तो वाच्यवाचक नियमके व्यवहारका लोप हो जायेगा । इससे एक वाक्यका युगपत् अनेक अर्थोंको कहना भी निरस्त हो जाता है अर्थात् एक वाक्य एक ही अर्थको कहता है । 'स्वपररूपकी अपेक्षासे वस्तु कथंचित्सदसदात्मक हो है' यह वाक्य भी, जो क्रमसे विवक्षित दोनों धर्मोंको विषय करनेवाला माना गया है, उपचारसे ही एक माना जाता है । अत: शब्द में एक ही अर्थ को कहने की स्वाभाविक शक्ति है । सत् शब्दकी सत्त्व मात्रको कहने में सामर्थ्य विशेष है, असत्त्व आदि अनेक धर्मोके कहने में नहीं । अनेकान्तके वाचक 'स्यात् ' शब्दकी अनेकान्त मात्रको कहने में सामर्थ्य विशेष है, एकान्तको कहने में नहीं । अनेकान्तके द्योतक 'स्यात्' शब्दकी अविवक्षित समस्त धर्मोका सूचन करनेमें ही सामर्थ्य विशेष है विवक्षित अर्थका कथन करनेमें नहीं । अन्यथा विवक्षित धर्म के वाचक शब्दों का प्रयोग करना व्यर्थ ठहरेगा । प्रसिद्ध पुरातन व्यवहारमें ऐसा कोई शब्द नहीं है जो अपनी नियत अर्थको कहनेकी सामर्थ्यविशेषका उल्लंघन करके प्रवृत्त होता हो । अतः एक शब्द भाव और अभाव दोनोंको एक साथ नहीं कह सकता । शंका - संकेत के अनुसार शब्दको प्रवृत्ति देखी जाती है । अत: जैसे जैनेन्द्र व्याकरण में शतृ और शान प्रत्ययोंकी 'सत्' संज्ञा संकेतके अनुसार शतृ और शान दोनों प्रत्ययों को कहती है; वैसे ही सत्त्व और असत्त्व धर्मों में संकेतित एक शब्द दोनों धर्मोका वाचक हो सकता है ? । समाधान- उक्त कथन युक्त नहीं हैं । प्रत्येक पदार्थ में शक्ति और अशक्ति प्रतिनियत होती है । शब्दमें एक बार एक ही अर्थको कहनेकी शक्ति है, अनेकको कहने की नहीं । संकेत भी उस शक्ति के अनुसार ही अर्थ में प्रवृत्त होता है । सेना, वन आदि शब्द भी अनेक अर्थो को नहीं कहते । सेनाशब्दसे हाथी, घोड़े, रथ, पैदल वगैरह के एक सम्बन्ध-विशेषको ही कहता है । इसी तरह वन, समूह, पंक्ति, माला, पानक, ग्राम आदि शब्द भी अनेक अर्थोंको न कहकर एक सम्बन्धविशेषरूप अर्थको ही कहते हैं । शंका- तो संस्कृत में 'वृक्षी' शब्द दो वृक्षोंको और 'वृक्षा:' शब्द अनेक वृक्षोंको कैसे कहता है ? समाधान -- पाणिनि व्याकरणके अनुसार वृक्षो शब्द निष्पन्न करनेके लिए 'वृक्षश्च वृक्षश्च वृक्षौ' इस प्रकार दो वृक्ष शब्द लाकर उसमें से एकका लोप कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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