Book Title: Jain Nyaya
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 360
________________ दृष्टान्तामास ३४५ विपक्षमें निश्चित रूपसे रहता हो उसे निश्चितवृत्ति अनैकान्तिक हेत्वाभास कहते हैं। जैसे 'शब्द अनित्य है, क्योंकि प्रमेय है।' यह 'प्रमेय' हेतु आकाशमें भी रहता है; क्योंकि आकाश भी प्रमेय है। किन्तु आकाश नित्य है। अतः यह अनैकान्तिक हेत्वाभास है । जिस हेतुका विपक्षमें रहना शंकित हो उसे सन्दिग्धवृत्ति अनैकान्तिक हेत्वाभास कहते हैं। जैसे महावीर सर्वज्ञ नहीं थे, क्योंकि वे वक्ता थे। इस अनुमानमें 'वक्तृत्व' हेतुके द्वारा महावीर भगवान्के सर्वज्ञ होनेका निषेध किया है, किन्तु वक्तृत्वका और सर्वज्ञत्वका कोई विरोध नहीं है, जो वक्ता हो वह सर्वज्ञ भी हो सकता है । अतः यह हेतु भी अनैकान्तिक हेत्वाभास है । इस हेत्वाभासके भी अनेक भेद बतलाये हैं। जिस हेतुका साध्य किसी दूसरे प्रमाणसे निर्णीत है, अथवा प्रत्यक्ष वगैरहसे बाधित है उसको अकिंचित्कर हेत्वाभास कहते हैं । क्योंकि वह हेतु व्यर्थ होता है । जैसे, 'अग्नि शीतल है क्योंकि द्रव्य है' इस अनुमानमें अग्निका शीतलपना साध्य प्रत्यक्षसे बाधित है अतः द्रव्यत्व हेतु व्यर्थ होनेसे अकिंचित्कर हेत्वाभास है । दृष्टान्ताभास अन्वयदृष्टान्त और व्यतिरेकदृष्टान्तके भेदसे दृष्टान्तके दो भेद हैं । अतः दृष्टान्ताभासके भी दो भेद हैं-अन्वयदृष्टान्ताभास और व्यतिरेकदृष्टान्ताभास । शब्द अपौरुषेय है, अमूर्त होनेसे, जैसे इन्द्रियसुख । यहाँ इन्द्रियसुख दृष्टान्तमें अमूर्तत्वरूप हेतु तो पाया जाता है किन्तु साध्य अपौरुषेयत्व नहीं पाया जाता; क्योंकि इन्द्रियसुख पौरुषेय है। शब्द अपौरुषेय है अमूर्त होनेसे, जैसे परमाणु, यहाँ दृष्टान्त परमाणु में साध्य अपौरुषेयत्व तो पाया जाता है किन्तु साधन अमर्तत्व नहीं पाया जाता; क्योंकि परमाणु मूर्तिक है । शब्द अपौरुषेय है अमूर्त होनेसे जैसे घट । यहाँ घट दृष्टान्तमें न तो साध्य अपौरुषेयत्व ही रहता है और न साधन अमूर्तत्व ही रहता है क्योंकि घट मूर्त और पौरुषेय होता है। ये सब अन्वयदृष्टान्ताभास हैं। शब्द अपौरुषेय है अमूर्त होनेसे । जो अपौरुषेय नहीं होता वह अमतिक नहीं होता जैसे परमाणु, इन्द्रियसुख और आकाश । यहाँ परमाणु दृष्टान्तमें अमूर्तत्व तो नहीं है किन्तु अपौरुषेयत्व है। इन्द्रियसुखमें अपौरुषेयत्व नहीं है किन्तु मूर्तत्व है। आकाशमें 'अपौरुषेयत्व और अमूर्तत्व' दोनों पाये जानेसे दोनोंको व्यावृत्ति नहीं है । अतः ये सब व्यतिरेकदृष्टान्ताभास हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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