Book Title: Jain Nyaya
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 377
________________ ३६२ जैन न्याय उपमानप्रमाणका सादृश्य प्रत्यभि. मतभेद ५३ ज्ञानमें अन्तर्भाव २०५ नयके भेद ३३० उमास्वामि ८ नयवाद ३२७ ऋजुमति मनःपर्ययका विवेचन १६३ नयसप्तभंगी ३१९ ऋजुसूत्रनय ३३४ निर्विकल्पक ज्ञानसमीक्षा ६४ एवकारके प्रयोगका विचार ३२४ नैगमनय ३३१ एवंभूतनय ३३६ नैयायिकसम्मत प्रमाणभेद ११६ कुन्दकुन्द आचार्य ६ न्यायशास्त्र १ कुमारसेन और कुमारनन्दि ३५ परोक्षज्ञानवाद समीक्षा ९१ कारकसाकल्यकी समीक्षा ५९ परोक्षप्रमाणका लक्षण और भेद १९३ चक्षुके प्राप्यकारित्वकी समीक्षा ५६ पात्रकेसरी २२ चार्वाकके एक प्रमाणवादको समीक्षा११४ प्रकाश ज्ञानका कारण नहीं १३० जैन न्याय ४ प्रत्यक्षसे व्याप्तिका ग्रहण माननेवाले जैनसम्मत प्रमाणलक्षण ४ योगोंकी समीक्षा २०९ ज्ञातृव्यापारवाद समीक्षा ६१ प्रत्यभिज्ञान प्रमाणका बौद्धों द्वारा निरज्ञानके अचेतनत्वकी समीक्षा ९९ सन, जैनों द्वारा समर्थन १९७ ज्ञान स्वसंवेदी है ९१ . प्रमाण और नयमें भेद ३२८ ज्ञानान्तरवेद्य ज्ञानवाद समीक्षा ९५ प्रमाणचर्चा दार्शनिक युगकी देन ११० तर्कप्रमाण २०७ प्रमाणका फल ३३७ तर्कप्रमाणका जैनों द्वारा समर्थन २०९ प्रमाण-फलमें सर्वथा भेदवादी नैयायिकोंतर्कके द्वारा व्याप्तिग्रहणका समर्थन की समीक्षा ३३८ प्रमाणलक्षणका विवेचन ४६ दर्शनके स्वरूपकी दिगम्बरमान्यता प्रमाणसप्तभंगी ३१९ प्रमाणाभास ३४२ दर्शनके सम्बन्धमें सिद्धसेन का मत १५० प्रमाणाभासके भेद ३४३ दर्शनान्तर सम्मत प्रमाण लक्षण ५३ प्रमाणाभासका स्वरूप ३४२ दार्शनिक युगसे पहले ज्ञानके पांच भेद प्रसिद्धार्थख्याति ८१ दृष्टान्ताभास ३४५ प्रामाण्यवाद समोक्षा १०२ धर्मकीर्ति के प्रमाणलक्षणमें अभ्रान्तपद. बहबहविधज्ञानका समर्थन १५९ . पर प्रकाश ६६ बोद्धसम्मत दो प्रमाणोंकी समीक्षा १५५ धारावाही ज्ञानोंके प्रामाण्यको लेकर मतिज्ञानके ३३६ भेद १५५ ० २०० प्रभाचन्द्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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