Book Title: Jain Nyaya
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 375
________________ जैन न्याय श्रुतज्ञान २७,१३२,१५१,२३३,२७७ ।। सहचरानुपलब्धि २१७,१३२, २७८,२८०,२८३,२८४, सहभावनियम २१६, सहानवस्थान विरोध ३०८ संग्रहनय ३३३,३३६, सांव्यवहारिकप्रत्यक्ष २८,३०,११२, संशयज्ञान ७१,१२८,१५३ सोन्यवहारिकप्रत्यक्ष (के भेद) १३२ संज्ञाक्षर २८७,२९३, सादृश्यप्रत्यभिज्ञान १९७, संज्ञीश्रुत २९३ साधन २१२, सकलप्रत्यक्ष २७,१६४, साध्य २२४, सकलादेश ३२०,३२२,३२३, सुनय सत ११ स्फोट २६८, सत्प्रतिपक्ष २१५ स्मृतिप्रमोष ७७, सन्निकर्ष ५४ स्याद्वाद १३,१६,२८३,२९५,२९६, सपक्ष २१३, २९८,२९९,३२०,३२५ सप्तभंगी ३०२ स्वरूपादि चतुष्टय ३०७ समभिरूढ़नय ३३५,३३६, स्वलक्षण (अर्थ) ६४,२४४, सम्यक् अनेकान्त १७,३२७ स्वसंवेदन ९५ सम्यक एकान्त १७,३२६, स्वार्थप्रमाण २९६,२९७, सम्यकश्रुत २९३ स्वार्थानुमान २३२, सर्वावधि (ज्ञान) १६०,१६१, सर्वोदयतीर्थ १४, हीयमान (अवधिज्ञान) १६१ सविकल्पक (ज्ञान) ६४,६५, हेतु २१२, २२९, सहचरहेतु २१७, हेतु (के भेद) २१७, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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