Book Title: Jain Nyaya
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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३५८
जैन न्याय
परमावधि (के भेद) १६१, दक्षिणाबन्ध १८९
परसंग्रह ३३३ दर्शन १४५,१४७,१५२,
परसंग्रहाभास ३३३ दुर्नय १३,३२१,३३०,
परस्परपरिहारस्थिति विरोध ३०८ देशावधि (ज्ञान) १६०,
परार्थप्रमाण २९६,२९७, द्रव्य ५
परार्थानुमान २३२, द्रव्यनैगमनय ३३३
परोक्ष ७,२७,१३२,१९३, द्रव्यवाक् २८१,
परोक्ष (के भेद) ३२,११२,१९३, द्रव्यश्रुत २८६,२९३,
पर्याय ५ द्रव्याथिकनय ५, ३०९, ३१४, ३१७, पर्याय श्रतज्ञान २९२ ३२९,३३०,३३१,
पर्यायाथिकनय ५,३०९,३१४, द्रव्येन्द्रिय १२२,१३५,
३१७,३३०,
पर्यायनैगमनय ३३२, धारणा (ज्ञान) १५४,
पूर्वचरहेतु २१७, धारावाहिकज्ञान ५०,
पूर्वचरानुपलब्धि २१७,
प्रतिपाति (अवधिज्ञान) १६१ नय १३,२९८,३१९,३२७,३२८,३२९, प्रतिज्ञा २२९, ३३०,३३१,
प्रत्यक्ष ७, २७,१३२, नयवाक्य ३२०,३२१,३२२,३२५, प्रत्यक्षाभास १९६ नयसप्तभंगी ३२०,३२१
प्रत्यभिज्ञान १९६,२०४,२०७, निगमन २२९,
प्रध्वंसाभाव १२१, निग्रहस्थान ३३,२३०,
प्रतीत्यसमुत्पादवाद ३४ निर्विकल्पक (ज्ञान) ६४,६५, प्रमाण २७,४५,४६,४७,३१९,३२८, नैगमनय ३३१,३३२,३३४,३३६, ३२९,३३०, नैगमनय (के भेद) ३३२,
प्रमाण (के भेद) ११३ नेगमाभास ३३१,३३३,
प्रमाणवाक्य ३१९,३२१,३२२,३२५, न्याय २
प्रमाणसंप्लव ४७,
प्रमाणसप्तभंगी ३२०,३२१, पक्ष २१३
प्रसिद्धार्थख्यातिवाद ८१ पररूपादिचतुष्टय ३०७,
प्राकाम्य १८९, परमावधि (ज्ञान) १६०
प्राकृतबन्ध १८८,
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