Book Title: Jain Nyaya
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 371
________________ परिशिष्ट ३ पारिभाषिक शब्दानुक्रमणी अपरसंग्रहनय ३३३, अंगप्रविष्ट २९४ अपोह २४५,२४७, अक्षरात्मक(श्रुतज्ञान) २९,२७८,२९० अप्रतिपाति (अवधिज्ञान) १६१ अख्याति अबाधितविषय २१५ अगमिकश्रुत २९४ अभावप्रमाण ११९,२६२, अचक्षुदर्शन १५१ अयोगव्यवच्छेद ३०० अणिमा १८९ अर्धजरतीन्याय १५२ अतीन्द्रियज्ञान १६५ अर्थनय ३३१ अत्यन्तायोगव्यवच्छेद ३०० अर्थपर्यायनैगम ३३२ अनंगप्रविष्ट २९४, अर्थपर्यायनैगमाभास ३३२, अनक्षरात्मक (-श्रुतज्ञान) २९,२७८, अर्थव्यंजनपर्याय नैगम ३३२ २९०,२९१,२९३, अर्थव्यंजनपर्याय नैगमाभास ३३२ अननुगामी (अवधिज्ञान) १६१ अर्थाध्यवसाय २४६, अनवस्थित (अवधिज्ञान) १६१ अर्थापत्ति ११६,२२५ अनिर्वचनीयार्थख्याति ८२, अर्थापत्ति (के भेद)११६,११७,२२५, अनुगामी (अवधिज्ञान) १६१, अर्थावग्रह १३२,१३३, अनुपलम्भ २०९, अलौकिकार्थख्याति ८३ अनुमान २१२, अवग्रह १३२,१४५, अनुमान (के अवयव) २२९ अवधिज्ञान १५१,१६० अनुमान (के भेद) २३२, अवधिज्ञान (के भेद) १६१, अनेकान्त २९६,२९९,३२६,३२७, ३२९,३३१ अवधिदर्शन १५१ अन्यथानुपपत्ति २०७,२१२,२१४,२१५ अवस्थित (अवधिज्ञान) १६२, अन्ययोगव्यवच्छेद ३०० अवायज्ञान १५४ अन्यापोह २४५,२४६, अविनाभाव २०७,२१५, अन्योन्याश्रयदोष २२६,२५७,२६६, अविनाभाव (के भेद) २१६, अशुद्धद्रव्यनंगमनय ३३३ २९५, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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