Book Title: Jain Nyaya
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 358
________________ प्रमाणामास ३४३ है। 'स्व'को अपेक्षा तो सभी ज्ञान प्रमाण होते हैं। क्योंकि ज्ञानके अस्तित्वका जो प्रत्यक्ष होता है कि 'मुझे ज्ञान हुआ' उसके अप्रमाण होनेका कोई कारण नहीं है। हाँ, बाह्य पदार्थको अपेक्षा कोई ज्ञान प्रमाण होता है और कोई ज्ञान अप्रमाण होता है। .. प्रमाणकी तरह ही 'प्रमाणाभासके भी भेद होते हैं। यथा-प्रत्यक्षाभास, परोक्षाभास, स्मरणाभास, प्रत्यभिज्ञानाभास, तर्काभास और अनुमानाभास । स्पष्टज्ञानको प्रत्यक्ष कहते हैं। अतः अस्पष्टज्ञानको भो प्रत्यक्ष कहना प्रत्यक्षाभास है जैसे बौद्धोंके द्वारा कल्पित निर्विकल्पक प्रत्यक्ष प्रत्यक्षाभास है। स्पष्टज्ञान को भो परोक्ष कहना परोक्षाभास है। जैसे मोमांसक करणज्ञानको स्पष्ट होते हुए भी परोक्ष मानता है। पहले अनुभव किये गये पदार्थमें 'वह' इस रूपसे होनेवाले अस्पष्ट ज्ञानको स्मरण कहते हैं । और उमसे विपरीतको स्मरणाभास कहते हैं। जैसे जिनदत्तका देवदतके रूपमें स्मरण करना स्मरणाभास है। इसी तरह दो जुड़वा भाइयोंमें-से एकको देखकर दूसरा समझ लेना या दूसरेको देखकर भो उसे वहो न मानकर उसीके समान समझना प्रत्यभिज्ञानाभास है। अर्यात् एकत्व में सादृश्यको प्रतोति और सदृशमें एकत्वको प्रत तिको प्रत्यभिज्ञानाभास कहते हैं । व्याप्तिके ज्ञानको तर्क कहते हैं और अविनाभाव नियमका नाम व्याप्ति है। अतः जिनमें अविनाभाव नहीं है उनमें भी होने वाला व्याप्तिज्ञान तर्काभास है । जैसे जो देवदत्तका पुत्र होता है वह काला होता है। साधनसे साध्यके ज्ञानको अनुमान कहते हैं। उससे विपरोत अनुमानाभास होता है। पक्ष, हेतु और दृष्टान्नपूर्वक हो अनुमानका प्रयोग होता है अतः अनुमानाभासको समझने के लिए पक्षाभास, हेत्वाभास और दृष्टान्ताभासको समझ लेना आवश्यक है। साध्यका लक्षण इष्ट, अबाधित और असिद्ध बतलाया है अतः अनिष्ट बाधित और सिद्धको पक्षाभास कहते हैं। जैसे मीमांसक शब्दको नित्य मानता है। वह यदि घबराकर शब्दको अनित्य सिद्ध करने लगे तो यह पक्षाभास है। इसी तरह शमको श्रावेन्दियका विषय सिद्ध करना भी पक्षाभास है; क्योंकि यह बात तो सिद्ध ही है कि शब्द श्रोत्रेन्द्रियसे सुनाई देता है, इसमें किसी को भो विवाद नहीं है। जो साध्य प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, लोक और स्ववचनसे बाधित हो वह भी पक्षाभास है । 'अग्नि शोतल होती है, क्योंकि द्रव्य है, जैसे जल।' इस अनुमानमें अग्निका शोतलता साध्य प्रत्यक्ष बाधित है; क्योंकि प्रत्यक्षसे १. प्रमाणामासके भेदोंके विवेचनके लिए प्रमेयकमलमार्तण्ड नामक ग्रन्थका पाँचवाँ परिच्छेद देखना चाहिए। -ले०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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